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(२६०) शीघबोध भाग ४ था. तीन नियंठा तीर्थ में और अतीर्थमें भी होते है. तीर्थकर हो और प्रत्येक बुद्धि हो. द्वारम्.
(९) लिंग-छेहो नियंठा ( साधु ) द्रव्य लिंग आश्री स्व. लिंग, अन्यलिंग, गृहलिंग तीनोंमें होवे. और भावलिंग आश्री स्वलिंगमें होते है. द्वारम्.
(१०) शरीर-५ औदारिक वैक्रिय, आहारक, तेजस, कार्मण, पुलाक. निग्रंथ, स्नातकमें औ० ते० का० तीन शरीर. वकुश. पडिसेवणमें औ० ते० का वै० और कषायकुशीलमें पांचों शरीरवाले मिलते है. द्वारम् ।
(११) क्षेत्र २ कर्मभूभी, अकर्मभूमी-छे हों नियंठा जन्मआश्री १५ कर्मभूमीमें होवे और संहरणआश्री पुलाककों छोडके शेष ५ नियंठा कर्मभूमी. अकर्मभूमी, दोनोमें होते है. प्रसंगोपात पुलाक लब्धि आहारिक शरीर, सध्वीका, अप्रमादी, उपशम श्रेणीवालेका, क्षपकश्रेणी०, केवलज्ञान उत्पन्न हुवे पीछे, इन सातोंका संहरण नहीं होता द्वारम्.
(१२) काल-पुलाक, उत्सर्पिणीकालमें जन्मआश्री तीजे, चौथे आराम जन्मे और प्रवर्तनाश्री ३-४-५ आरामें प्रवते. अव. सर्पिणीकालमें दूजे, तीजे चौथे आरामें जन्मे और तीजे, चौथे आराम प्रवते. नो उत्सर्पिणी नोअवसर्पिणी चौथे पल्ली भाग ( द. षमासुषमा काल महाविदेह क्षेत्रमें ) होवे और प्रवर्ते एसेही निग्रंथ स्नातकमें समझलेना. पुलाकका संहरण नहीं. और निग्रंथ स्नातक संहरणआश्री दुसरे कालमें भी होते है. और वकुश, पडिसेवण, कषायकुशील, अवसर्पिणीकालके ३-४-५ आरेमें जन्मे और प्रवते.उत्सर्पिणीकालमें २-३-४ आरेमें जन्मे और ३-४ आरेमें प्रवर्ते. नो उत्सर्पिणी नोअवसर्पिणी. चौथा पल्ली. भागमें होवे और संहरणआश्री दूसरे पल्ली भागोंमें होवे. द्वारम्