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बोल. ६३ (१३) गति-देखो यंत्रसे.
गति.
स्थिति.
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नाम. जघन्य. उत्कृष्ट. , जघन्य. . उत्कृष्ट. पुलाक सुधर्म देवलोक सहस्रार दे. प्रत्येक । १८ सागर वकुश , अच्युत दे० ! पल्योपम J२२ सागर पडिसेवण ,, , , कषायकुशाल अनुत्तर वि०
३३ सागर निग्रंथ अनुत्तर वि० सर्वार्थसिद्ध ३१ सागर स्नातक । मोक्ष ३३ सागर
देवताओंमें पछि ५ है. इन्द्र, लोकपाल, वायत्रिषक, सामा. निक, अहमइन्द्र, पुलाक, वकुश. पडिसेवणमें पहिलेकी ४ परिमेंसे १ पहिवाला होवे, कषायकुशीलको ५ मेंकी १ पछि होवे, निग्रंथको अहमहन्द्रकी १ पति होवे एवं स्नातक तथा मोक्षमें जावे और जघन्य विराधक हो तो चार जातिका देवता होवे, उत्कृष्ट विराधक चौषीस दंडकमें भ्रमण करे द्वारं.
(१४) संयम-संयमस्थान असंख्याते है. पुलाक, वकुश, पडिसेवण, कषायकुशील. इन चारोंके संयमस्थान असंख्याते २ है. निग्रंथ स्नातकका संयमस्थान एक है. अल्पाबहुत्व सर्वस्तोक निग्रंथ स्नातकके संयमस्थान पक है. इनोंसे असंख्यातगुणे पुलाकके संयमस्थान, इनोंसे असं० गुणे वकुशके, इनोंसे असं० गुणे पडिसेवणके, इनोसे असं० गुणे कषायकुशीलके संयमस्थान. द्वारं.
(१५) निकासे-(संयमके पर्याय ) चारित्र पर्याय अनंते