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( २६२) शीघ्रबोध भाग ४ था. है. पुलाकके चारित्र पर्याय अनन्ते एवं यावत्. स्नातक कहना, पुलाकसे पुलाकके चारित्र पर्याय. आपसमें छे ठाणवलिया. यथा १ अनन्तभागहानि, २ असंख्यातभागहानि, ३ संख्यातभागहानि, ४ संख्यातगुणहानि, ५ असंख्यातगुणहानि, ६ अनन्तगुणहानि ।। १ अनन्तभागवृद्धि, २ असंख्यातभागवृद्धि, ३ संख्यातभागवृद्धि, ४ संख्यातगुणवृद्धि, ५ असंख्यातगुणवृद्धि, ६ अनन्तगुणवृद्धि, पुलाक, वकुश पडिसेवणसे अनन्तगुणहीन, कषायकुशील. छे ठाणवलिया. निग्रंथ स्नातकसे अनन्तगुणहीन ॥ वकुश पुलाकसे अनन्तगुणवृद्धि. वकुश वकुशसे छे ठाणवलिया. वकुश, पडिसेवः ण,कषायकुशीलसे छे ठाणवलिया. निग्रंथ, स्नातकसे अनन्तगुणहीन. ।। २ ।। पडिसेवण, वकुश माफिक समजना. ॥ ३॥ कषायकुशील है सो पुलाक, वकुश, पडिसेवण और कषायकुशील, इन चारोंसे छे ठागवलिया. और निग्रंथ स्नातकसे अनन्तगुणहीन. ॥४॥ निग्रंथ प्रथमके चारोंसे अनन्तगुणे अधिक. निग्रंथ स्नातकसे समतुल्य ॥ ५ ॥ स्नातक निग्रंथके माफिक समज ना ॥ ६ ॥
अल्पाबहुत्व- पुलाक और कषायकुशीलके जघन्य चारित्र पर्याय आपसमें तुल्य १ पुलाकका उत्कृष्ट चारित्र पर्याय अनन्त गुणे, २ वकुश और पडिसेवणके जघन्य चारित्र पर्याय आपसमें तुल्य अनन्तगुणे, वकुशका उ चा० पर्याय अनं०४ पडिसेवणका उ० चा पर्याय अनं. ५ कषायकु. उ० चा पर्याय अनं०६ निग्रंथ और स्नातकका जघन्य और उत्कृष्ट चारित्र पर्याय आपसमें तुल्य अनन्तगुणे. द्वारं.
(१६) योग ३ मन, वचन, काय-पहलेके पांच नियंठा संयोगी, स्नातक संयोगी और अयोगी. द्वारं.
(१७) उपयोग २ साकार, अनाकार-छए नियंठामें दोनों उपयोग मिले. द्वारम्