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शीघबोध भाग ४ था.
ज्ञान-मत्यादि ५, तित्थे-तीर्थमें होवे २, लिंग-स्वलिंगादि शरारऔदारिकादि, खित्ते-किसक्षेत्रमें, काले-किसकालमें, गती-किमगतीमें संयम-संयमस्थान निकासे-चारित्रपर्याय योग सयोगी अयोगी उपयोग-साकार बहुता २ कषाय-सकषाय २ लेसाकृष्णादि ६ परिणाम-हियमानादि ३ बंध-कर्मका वेदय-कर्मवेदे, उदीरणा-कर्मकी, उपसंपझाण-कहांजावे सन्नो सन्नाबहुता, आहार -आहारी २ भव-कितना भव करे आगरेस कितने वख्त आवे काल-स्थिती अंतरा समुद्घात-वेदना ७ क्षेत्र-कितने क्षेत्र में होवे फुसणा-किताक्षेत्रस्पर्श भाव-उदयादि ५ परिणाम-कितनालाधे अल्पाबहुत्व इति ३६ द्वार।
( १ ) पन्नवणा-नियठा ( साधु ) के प्रकारके है
(१) पुलाक-दो प्रकारके है। (१) लब्धी पुलाक जैसे चक्रवर्ती आदि कोई जैनमुनी या शासनकी आशातना करे तो उसकी सेना वगेरहको चकचूर करने के लिये लब्धीका प्रयोग करे ( २ ) चारित्र पुलाक-जिसके पांच भेद ज्ञानपुलाक, दर्शन पुलाक, चारित्रपुलाक, लिंगपुलाक, ( विना कारण लिंग पलटावे) अहसुहम्मपुलाक, (मनसेभी अकल्पनीय वस्तु भोगनेकी इच्छा करे । जेसे चावलोंकि सालीका पुला जिस्में सार वस्तु कम और मटी कचरा ज्यादा।
(२) बकुश-के पांच भेद है। आभोग ( जानता हुवा दोष लगावे ) अणाभोग, (विनाजाने दोष लगे) संवुडा, (प्रगट दोष लगावे ) असंवुडा, ( छाने दोष लगावे ) अहासुहम्म, हस्त मुख धोवे या आंख आंजे ) जेसे शालका गाइटा जिस्मे खला करनेसे कुच्छ मट्टी कम हुइ है।
(३) पडिसेवना–५ भेद-ज्ञान, दर्शन, चारित्र में अति. चार लगावे । लि गपलटावे, आहासुहम, तप करके देवताकी