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अष्टप्रवचन.
( २४३) (६) विशाल लम्बी चोडी हो वहां जाके परठे। (७) स्वल्प कालकि अचित भूमि हो वहां न परहे। (८) नगर ग्रामके नजदीक न परठावे । (९) मृषादिके बील हो वहांपर न परठे। (१०) जहां निलण फूलण त्रस प्राणी ही वहां न परठे।
इन दशों स्थानोंका विकलप १०२४ होते है जिस्मे १०२३ विकल्प तो अशुद्ध है मात्र १ भांगा विशुद्ध है जहांतक बने वहां तक विशुद्धिकि खप करना चाहिये।
(२) क्षेत्रसे मुनियोंकों मल मात्र जंगल नगरसे दुर जाना चाहिये जहां गृहस्थ लोग जाते हो वहां नहीं जाना चाहिये. नगरके बाहार ठेरे होतों नगरमे तथा नगरके अन्दर ठेरे होतों गृहस्थोंके घर में जाके नहीं परठे।
(३) कालसे कालोकाल भूमिकाकी प्रतिलेखन करे।
(४) भावसे पंजी प्रतिलेखी भूमिकापर टी पैशाब करते समय पहिले आवस्सही तीन दफे कहे 'अणुजाणह जस्सग्गो' आज्ञालेवे परठने के बाद वोसिरामि' तीन दफे कहे पीछा आति बख्त निसिही' शब्द कहे स्थानपर आके इर्यावहि याने आलोचना करे इति समिति.
(१) मनोगुप्तिका चार भेद. द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, द्र. व्यसे मनको सावध-सारंभ समारंभ आरंभमे न प्रवर्तावे. क्षेत्रसे सर्वत्र लोकमें. कालसे जाव जीवतक. भावसे मन आते रोद्र वि. षय कषायमें न प्रवावे.
(२) बचनगुप्तिका चार भेद. द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, द्रव्यसे चार प्रकारको विकथा न करे. क्षेत्रसे सर्वत्र लोकमें. कालसे जाव जीवतक. भाषसे राग द्वेष विषयमें पचन न प्रववे सावधन बोले.