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३६ बोल.
(२४५)
पाणाईवायाओ वेरमणं, सव्वाओ मृषाओ वायाओ वेरमणं, सव्याओ अदीनादानाओ वेरमणं, सव्वाओ मेहुआणो वेरमणं, सव्वाओ परिगाहो वेरमणं ।
(६) छे काय-पृथ्वीकाय, अपकाय, तेउकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, त्रसकाय । छ लेश्या-कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या, तेजसलेश्या पद्मलेश्या, शुक्ललेश्या।।
(७) सात भय-आलोक भय, परलोक भय, आदान भय, अंकश मात्र भय, मरण भय, अपयश भय, आजीवका भय ।
(८) आठ मद-जातीमद, कुलमद, बलमद, रूपमद, तप मद, सूत्रमद, लाभमद, ऐश्वर्यमद।
(९) नौ ब्रह्मचर्यगुप्ति-स्त्री पशु नपुंसक सहीत उपाश्रय में न रहे । यथा बिल्ली और मूषकका दृष्टांत १ स्त्रियोंकी कथा वारता न करे । यथा नीबूकी खटाईका दृष्टांत २ स्त्री जिस आसनपर बैठी हो उस आसनपर दो घडीसे पहिले न बठे। अगर बैठे तो तपी हुई जमीन पर ठसे हुवे घृतका दृष्टांत । ३ बीके अंगोपांग इन्द्रिय वगेरहन्न देखे। जैसे कञ्ची आंख और सूर्यका दृष्टांत । ४ विषयभोगादि शद्रोंको भीत, ताटा, कनात आदिके अन्तरसेभी न सुने । यथा गजवीज समय मयूरका दृष्टांत। ५ पर्व (गृहस्थाश्रम ) के कामभोगको याद न करे। इसपर पंथिक और डोकरीके छासका दृष्टांत । ६ प्रतिदिन सरस आहार न करे । अगर करे तो सन्निपातका रोगमे दूध मिश्रीका दृष्टांत । ७ प्रमाणसे अ. धिक आहार न करे। जैसे सेरकी हंडीमें सवासेर पकाना (रा. धना) का दृष्टांत ८ शरीरकी शुश्रुषा विमूषा न करे। अगर करे तो काजलकी कोठरी में सफेद कपडेका दृष्टांत ९
१०) दश यति धर्म-खंते ( क्षमा करना ) मुत्ते (निलो. भता) अज्जवे । सरलता) मद्दवे ( मदरहित) लाघवे (द्रव्य