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अष्टप्रवचन.
( २३७ )
(१०) ग्लोंनोंके लिये किया आहार लेना दोष । (११) बादलों में अनाथोंके लिये बनाया आहार लेना दोष. ( १२ ) गृहस्थ नेताकि तोर कहे कि हे स्वामिन् आज हभारे घरे गोचरीको पधारो इस माफीक जावे तो दोष ।
श्री प्रश्नव्याकरण सूत्रमें -
(१) मुनिके लिये रूपान्तर रचना करके देवे जेसे नुकती दानोंका लड्डु बना देवे इत्यादि तो दोष है ।
( २ ) पर्याय बदल के - जेसे दहीका मठ्ठा राइता बनाके देवे (३) गृहस्थों के वहां अपने हाथों से आहार लेवे तो दोष. (४) मुनिके लिये अन्दर ओरडादि से बाहार लाके देवे तो दोष ।
(५) मधुर मधुर वचन बोलके आहारादिकि याचना करे. श्री निशिथ सूत्र
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( १ ) गृहस्थोंके वहां जाके पुच्छे कि इस वर्तनमें क्या है ? इस्में क्या है एसी याचना करने से दोष है ।
( २ ) अटवीमें अनाथ मजुरीके लिये गया हुवा से याचना कर दीनता से आहार ले तो दोष है ।
(३) अन्यतीर्थी जो भिक्षावृत्ति से लाया हुवा आहार है उनों से याचना कर आहार ले तो दोष है ।
( ४ ) पासत्थे शीथिलाचारीयों से आहार ले तो दोष । ( ५ ) जीस कुलमें गोचरी जावे वह लोग जैन मुनियोंकि दुर्गच्छा करे एसे कुलमें जाके आहार ले तो दोष ।
(६) शय्यातरकों साथ ले जाके उनोंकि दलाली से अशानादिकि याचना करना दोष है ।