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अष्टप्रवचन. . ( २३५) मयका आहार ( शुभाशुभ निमित्त ) या राजाके बचीत आहार में पंडालोगोंके भाग होते है वास्ते अन्तरायका कारण होनेसे दोष है।
[१४] शय्यातर-मकानके दातारका आहार लेनेसे दोष. [१५] नित्यपंड-नित्य एक ही घरका आहार लेना दोष. [१६] पृथ्व्यादिके संघटे से आहार लेना दोष है । [१७ ] इच्छा पुरण करनेवाली दानशालाका आहार लेना,, [१८] कम खाने में आवे ज्यादा परठना पडे एसा आहार,,
[१९] आहार ग्रहन करने के पहले हस्तादि धोके तथा आ. हार ग्रहन करने के बाद सचित्त पाणी आदिसे हाथ धोवे एसा आहार लेना दोष है। .
[२०] प्रतिनिषेध कुल स्वल्पकालके लिये सुवासुतक जन्म मरण वाले कुलमें तथा जावजीव-चंडालादि कुलमें गौचरी जाना मना है अगर जावे तो दोष है।
[२१] जास कुलमें ओरतोंका चाल चलन अच्छा न हो एसे अप्रतितकारी कुलमें मुनि गौचरी जावे तो दोष है।
[२२] गृहस्थ अपने घरमें आनेके लिये मना करदो हो कि . मेरे घर न आना एसे कुल में गौचरी जाना दोष है।
[२३] मदिरापान लेना तथा करना महा दोष है। श्री आचारांगसूत्र -
(१) पाहुणों के लिये बनाया आहार जहांतक पाहुणा भोजन नहीं किया हो वहांतक वह आहार लेना दोष है।
( २ ) त्रस जीवका मांस बिलकुल निषेध है। • (३) जिस गृहस्थों के पैदाससे आधा भाग तथा अमुक भाग पुन्यार्थ निकालते हो उनोंसे अशनादि देवे वह भी दोष है ।