________________
(२३४) शीघ्रबोध भाग ४ था. जीव रक्षा निमित्त तपश्चर्या निमित्त और अनसन करने नि... मित्त इन छे कारण से आहारका त्याग कर देना चाहिये । और छे कारण से आहार करना कहा है क्षुधा वेदना सहन नही हो सके, आचार्यादिकि व्यावच्च करना हो, इ सोधनेके लिये, संयम यात्रा निर्वाहानेको, प्राणभूत जीव सत्वकि रक्षा निमित्ते, धर्मकथा कहनेके लिये इन छे कारणों से मुनि आहार कर सक्ते है ।
श्री दशवैकालिक सूत्रमें
[१] निचा दरवाजा हो वहां गौचरी जानेमें दोष है का. रण सिरके लग जावे पात्रा विगेरे फूट जानेका संभव है।
[२] जहांपर अन्धकार पडता हो वहां जानेमें दोष है.
[३] गृहस्थों के घर द्वारपर बकरे बकरी [४] बचे बची [५] श्वान कुत्ते [६] गायोंके वाछरू बेठे हो उनोंको उलंगके जाना दोष है। कारण वह भीडके-भय पामे इत्यादि [७] औरभी कोइ प्राणी हो उनोको उलंघके जानेसे दोष है कारण यहां शरीर या संयमकि घात होनेका प्रसंग आ जाते है।
[८] गृहस्थोंके वहां मुनि जानेके पहले देनेकि वस्तुवों आधी-पाछी कर दी हो संघटेकि वस्तुवों इधर उधर रख दो हो वह लेने में दोष है।
[९] दानके निमित्त बनाया हुवा भोजन [१०] पुन्यके निमित्त [११] वणिमग्ग-रांकादिके [१२] श्रमण शाक्यादिके निमित्त इन च्यारोक लिये बनाया हवा भोजन मुनि ग्रहन करे तो दोष । अगर गृहस्थ उन निमित्तवालोंको भोजन कराके बचा हुवा आहार अपने घरमें खाते पीते हो तो उनोंके अन्दर से लेना मुनिको कल्पता है कारण वह आहार गृहस्थोंका हो चुका है।
[१३] राजाके वहांका बलीष्टाहार तथा राज्याभिशेक स.