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( २३२) शीघबोध भाग ४ था.
[२८] विजादोष-गृहस्थोंको विद्या बतलाके अर्थात् रोह णि आदि देवीयोंको साधन करनेकी विद्या ,,
[२९] मित्तदोष-यंत्र मंत्र शीखाना अर्थात् हरीणगमेषी आदि देवतोंका साधन करवाना ,,
[३०] चून्नदोष-एक पदार्थके साथ दुसरा पदार्थ मीला के एक तीसरी वस्तु प्राप्त करना सीखाके ,,
[३१ ] जोगेदोष-लेप वसीकरणादि बताके आ० ,, .
[३२] मूलकम्मेदोष-गर्भापात्तादि औषधीयों उपायों बतलाके आहार पाणी ग्रहन करना दोष है.
[क] यह सोलह दोष मुनियों के कारण से लगते है वास्ते मोक्षाभिलाषीयोंको अपने चारित्र विशुद्धि के लिये इन दोषोंको टालना चाहिये इन १६ दोषोंको उत्पात दोष कहते है।
[३३] संकिए दोष-आहार ग्रहन समय मुनिकों तथा गृ. हस्थोंको शंका हो कि यह आहार शुद्ध है या अशुद्ध है, एसे आहारकों ग्रहन करना यह दोष है।
[३४] मंक्खिए दोष-दातारके हाथकि रेखा तथा बाल कञ्चे पाणी से संसक्त होनेपर भी आहार ग्रहन करना।
[३५] निक्खित्तिये दोष-सचित्त वस्तुपर अचित्ताहार रखा हुवा आहार ग्रहन करे.
[३६] पहियेदोष-अचित्तवस्तु सचित्तसे ढांकी हुइ हो , [ ३७ ] मिसीयेदोष-सचित्त अचित्त वस्तु सामिल हो ,
[३८] अपरिणियेदोष-शस्त्र पूरा नहीं लागा हो अर्थात् जो नलादि सचित्तषस्तु है उनोंको अग्न्यादि शस्त्र पूरा न लगा हो,,
[३९] सहारियेदोष-एक वर्तनसे दुसरे वर्तनमें लेके देवे