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अष्टप्रवचन.
( २३१) । ११ अभिहड दोष-अन्यस्थानसे सन्मुख लाके देवे. [१२] भिन्नदोष-छान्दो कीमाडादि खुलवाके देवे.
[१३] मालोहड दोष-उपरसे जो मुश्किलसे उतारी जावे एसे स्थानसे उतारके दी जावे।
[१४] अच्छीजे दोष-निर्बल जनोंसे सबल जबरदस्ति बलात्कारे दीरावे उसे लेना.
[१५] अणिसिछे दोष-दो जनोंके विभागमें हो एकको देने का भाव हो एकके भाव न हो वह वस्तु लेवे तो भी दोषित है.
[१६] अजोयर दोष- साधुके निमित्त कमाहार बनाते समय ज्यादा करदे वह आहार लेना। ,,
इन १६ दोषोंको उद्गमन दोष कहते है यह दोष जो गृहस्थ भद्रीक साधु आचारसे अज्ञात और भक्तिके नामसे दोष लगाते है.
[१७] घाइदोष-धात्रीपणा याने गृहस्थ लोगोंके बालबच्चों को रमाना, ग्वेलाना इनौसे आहार लेना। .,
१८ दुइदोष-दूतिपणा इधर उधर के समाचार कह के आहार लेना.
। १९! निमित्तदोष-भूत भविष्यका निमित्त कहके आ० ,, [२०] आजीवदोष - अपनि जातिका गौरव बतलाके , [२१] वणिमग्गदोष-रांककि माफिक याचना कर आ०,, [२२] तिगच्छदोष-औषधि वगरह बतलाके आ० , [२३] कोहेदोष-क्रोध कर भय बतलाके आहार लेना. [ २४ ] माणेदाष-मान अहंकार कर आहार लेना. [२५ मायादोष-मायावृत्ति कर आहार लेना.
[२६. लोभेदोष-लालच लोलुपता से आहार लेना. ... [२७ ] पुव्वंपच्छसंथुव दोष-आहार ग्रहन करने के पहले या पीच्छे दातारके गुण कीर्तन करके आहार लेना।