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श्वासोश्वासाधिकार. ( २१७) दापक्ष महाशुक्र देव ज. चौदापक्ष उ० सत्तरापक्ष सहस्रादेव ज. सत्तरापक्ष उ० अठारापक्षसे अणतूदेव ज० अठारापक्ष. उ० उनि. सपक्षसे, पणत्देव ज० उन्निसपक्ष उ० वीस पक्षसे अरण्यदेव म० बीसपक्ष उ० एकवीस पक्षसे अच्युतदेव जः एकवीस पक्ष उ० बा. बीसपक्षसे ग्रीवैकके पहले पीकके देव ज० बावीसपक्ष उ• पचवीस पक्ष दुसरी त्रीकके देव ज० पचवीस पक्ष उ. अठावीस पक्षसे तीसरी त्रीकके देव ज. अठावीस पक्ष उ० एकतीस पक्ष च्यारानुत्तर वमानके देव ज० एकतीस पक्ष उ० तेत्तीसपक्ष सर्वार्थसिद्ध वैमानके देव जघन्य उत्कृष्ट तेत्तीसपक्षसे श्वासोश्वास लेते है। जेसे जेसे पुन्य बडते जाते है वेसे वेसे योगोंकी स्थिरता भी वढती जाती है देवतावोंमें जहां हजारों वर्षोंकि स्थिति है वह सात स्तोक कालसे, पल्योपमकि स्थिति है वह प्रत्येक दिनोंसे
और सागरोपमकी स्थिति है वहां जीतने सागरोपम उतनेही पक्षसे श्वासोश्वास लेते है । नोट-असंख्यात समयकि एक आवि. लका संख्याते आविलका, का एक श्वासोश्वास, सात श्वासोश्वासका एक स्तोक काल होते है इति ।
सेवंभंते सेवभंते-तमेवसच्चम्.
--**-- थोकडा नम्बर. २६
(सूत्रश्री पनवणाजी पद ८ वा संज्ञाधिकार) संज्ञा-जीवोंकि इच्छा. वह संज्ञा दश प्रकारकी है आहारसंज्ञा, भयसंज्ञा, मैथुनसंज्ञा, परिग्रहसंज्ञा, क्रोधसंज्ञा, मानसंक्षा, मायासंज्ञा, लोभसंज्ञा, लोकसंज्ञा, ओघसंज्ञा ।