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(२२२) शीघ्रबोध भाग ३ जो. एवं मनुष्य शेष २३ दंडक के लेश्या संयुक्त जीव आत्मारंभी परा: . रंभी उभयारंभी है. कृष्ण, निल, कापोत, लेश्यावाले समुच्चय जीव
ओर बावीस बावीस दंडक के जीव सबके सब आरंभी है कारण यह तीनों अशुभ लेश्या है इनोंके परिणाम आरंभसे वच नहीं सकते है। तेजो लेश्या समुच्चय जीव और अठारा दंडकोमे है जिस्मे समुच्चय जीव और मनुष्य के दंडकमें जो संयति अप्रमादि और सुभयोगवाले तो अनारंभी है शेष सब आरंभी है एवं पद्म लेश्या तथा शुक्ल लेश्या भी समजना परन्तु यह समुच्चय जीव वैमानिक देव ओर संज्ञी मनुष्य तीर्यचमे ही है जिस्मे संयति अप्रमादिपणा मनुष्यमें ही होते है वह अनारंभी है शेष जीव तों आत्मारंभी परारंभी उभय आरंभी होते है वह अनारंभी नही है।
आत्मारंभी स्वयं आप आरंभ करे। परारंभी दुसरोसे आरंभ करावे उभयारंभी आप स्वयं करे तथा दूसरोंसे भी आरंभ करावे इति.
सेवभंते सेवभंते-तमेवसच्चम्
--* *--- थोकडा नम्बर २६.
( अल्पाबहुत्त्व.) संज्ञी,असंज्ञी, तस, स्थावर, पर्याप्ता, अपर्याप्ता, सूक्ष्म और वादर. इन आठ बोलोंके लद्धिया अलद्धिया एवं १६ ।
(१) सर्वस्तोक संज्ञी के लद्धिया. ( २ ) तस जीवोंके लद्धिया असंख्यात गुणे (३) असंज्ञीके अलद्धिये अनंतगुणे (४) स्थावर के अलद्विये विशेष. (५) बादर के लद्धिये अनंत गु० (६) सुक्ष्मके अलद्धि में विशेषः (७) अप