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क्रियाधिकार.
(१३५) अथवा रूप और रूपके अनुकुल द्रव्योंसे करते है। परिग्रहकि क्रिया सर्व द्रव्य से करते है एवं क्रोध, मान, माय, लोभ, राग, द्वेष, कलह अभ्याख्यान, पैशुन्य परपरीवाद रति अरति माया मृषावाद और मिथ्यादर्शन इन सबकी क्रिया सर्व द्रव्यसे होती है अर्थात् प्राणातीपात, अदत्तादान, मैथुन इन तीन पापकि क्रिया देश द्रव्यी है शेष पंदग पापकी क्रिया सर्व द्रव्यी है। समुच्चय जीवापेक्षा अठारा पापकि क्रिया बतलाइ है इसी माफीक नरकादि चौवीस दंडक भी समझ लेना. इसी माफीक समुच्चय जीवों और नरकादि चौवीस दंडकके जीवों (बहुवचन) का सूत्र भी समझना एवं ५० बोलोकों अठारा गुने करनेसे ९०० तथा १२५ पहले पांच क्रियाके मीलाके सर्व यहांतक १०२५ भांगे हुवें.
जीव प्राणातिपातकि क्रिया करता हुवा. स्यात् सात कर्म बान्धे स्यात् आठ कर्म बन्धे एवं नरकादि २४ दंडक। बहुत नीवोंकि अपेक्षा सात कर्म बान्धनेवाला भी घणा, आठ कर्म वन्धनेवाले भी धणा। बहुतसे नारकीके जीवों प्राणातिपातकि क्रिया करते हुवे. सात कर्म तो सदैव बांधते है सात कर्म बान्धने वाले बहुत आठ कर्म बांधनेवाले एक, सात कर्म बांधनेवाले बहुत और आठ कर्म बान्धनेवाले भी बहुत है. इसी माफीक एकेन्द्रिय वर्जके १९ दंडकमे तीन तीन मांगे होनसे ५७ भांगे हुवें, एकेन्द्रिके पांच दंडकमें सात कर्म बन्धनेवाले बहुत और आठ कर्म बान्धनेवाले भी बहुत है । इसी माफीक मृषाबादादि यावत् मिथ्याशल्य अठारे पापकि क्रिया करते हुवे समुञ्चय जीव और चौवीस दंडकके पूर्ववत् सात कर्म ( आयुष्य वर्जके ) तथा आठ कर्मोका बन्ध होते है जिस्के भांगे प्रत्येक पापके ५७ सतावन होते है सतावनकों आठ गुणे करनेसे १०२६ भांगे हुवे ।