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शीघ्रबोध भाग ३ जो.
कायका संस्थानकि स्थापना करना तथा धर्मास्तिकाय एसा अक्षर लिखना सो स्थापना निक्षेपा है जहां धर्मास्तिकाय हमारे काममें नहीं आति हों वह द्रव्य धर्मास्तिकाय द्रव्य निक्षेप है जहां हमारे चलन में सहायता करती हो उसे भावनिक्षेप भाव धर्मास्तिकाय है इसी माफीक जीतने जीवाजीव पदार्थ है उन सब पर च्यार च्यार निक्षेपा उत्तरादेना इति निक्षेप द्वार ।
(३) द्रव्य - गुण - पर्यायद्वारद्रव्य-धर्मास्तिकाय द्रव्य, अधर्म द्रव्य, आकाश द्रव्य, जीवद्रव्य पौद्गल द्रव्य-कालद्रव्य इन छे द्रव्यकागुण अलग अलग है जैसे चलत गुण स्थिर गुण अवगाहन गुणउपयोग गुणमीलन पूरणगुण, वर्तनगुण, यह षट् द्रव्यके गुण है इन षद्रव्य के अन्दर जो अगुरु लघु पर्याय है वह समय समय में उस्पात व्यय हुवा करती है दृष्टान्त जेसे द्रव्य एक लड्डु है उनका गुण मधुरता और पर्याय मधुरता में न्यूनाधिक होना. जेसे द्रव्य जीव गुण ज्ञानादि- पर्याय अगुरु लघु तथा पर्यायके दो भेद है (१) कर्म भावी, ( २ ) आत्म भावी - जिसमे कर्म भावी जो नरकादि च्यार यति केजीव अष्टकर्म पाश में भ्रमन करते सुख दुःखकी पर्यायका अनुभव करे और आत्मभावी जो ज्ञानदर्शन चारित्रकों जेला जेसा साधन कारन मीलता रहे वेसी वेसी पर्याय कि वृद्धि होती रहै ।
( ४ ) द्रव्य क्षेत्र काल भाव द्वार - द्रव्य जीवा जीव द्रव्यक्षेत्र आकाश प्रदेश, काल समयावलिका यावत् काल-चक्र-भाव वर्ण गन्ध रस स्पर्श-जैसे मेरु पर्वत द्रव्यसे मेरु है क्षेत्रसे लक्ष योजनका क्षेत्र अवगाहा रखा है. कालसे आदि अंत रहित है भाव से अनंतवर्ण पर्यष एवं गन्ध रस स्पर्श पर्यव अनंत है दुसरा टान्त द्रव्य से एक जीव क्षेत्रसे असंख्यात प्रदेशी कालसे आदि