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उपादान निमत्त. ( १७५) पहला व्यवहार होगा तो फीर निश्चय भी कभी आ जायेंगे। जेसे निश्चयमें जीव अमर है व्यवहार में जीव मरे जन्मे, निश्चयमें कर्मोंका कर्ता कर्म है व्यवहारमें कहेका कर्ता जीव है, निश्चय में जीव अव्याबाध गुणोंका भोक्ता है व्यवहार में जीव सुखदुःख का भोक्ता है निश्चयमें पाणी चवे. व्यवहार में घर चवे. निश्चयमें आप जावे. व्य० ग्राम आवे. नि. बेल चाले. व्य. गाडी चाले. निक पाणी पडे. व्य० पनालपडे इत्यादि अनेक दृष्टान्तोंसे निश्चय व्यवहारको समजना चाहिये. निश्चय कि श्रद्धना और व्यवहार कि प्रवृति रखना शास्त्रकारों कि आज्ञा है ।
(८) उपादान निमत्त-निमत्त है सो उपादान का साधक बाधक है जेसे शुद्ध निमत्त मीलनेसे उपादानका साधक है अशुद्ध निमत्त मीलना उपादानका बाधक है। जेसे उपादांन माताके निमत्त पिताको पुत्रकि प्राप्ती हुइ-उपादांन गौकों निमत्त गोपालको दुध की प्राप्ती हुइ । उपादांन दुध निमत्त खटाइ दहीकी प्राप्ती हुइ । उपादांन दहीका निमत्त भीलोने का घृतकि प्राप्ती हुइ. उपादान गुरुका निमत्त सुशील शिष्य को ज्ञानकि प्राप्ती हुइ. उपादांन भव्य जीवकों निमत्त ज्ञानदर्शन चारित्र तप ध्यान मौन पूजा प्रभावनादिका जीनसे मोक्षकी प्राप्ती हुई
(९) प्रमाण च्यार--प्रत्यक्ष प्रमाण, आगम प्रमाण, अनुमान प्रमाण ओपमा प्रमाण जिस्मे प्रत्यक्ष प्रमाण के दो भेद है (२) इन्द्रिय प्रत्यक्ष प्रमाण (२) नो इन्द्रिय प्रत्यक्ष प्रमाण, इन्द्रिय प्रत्यक्ष प्रमाण के पांच भेद है श्रोत्रंन्द्रिय प्रत्यक्ष प्रमाण, चक्षु इन्द्रिय प्रत्यक्ष प्रमाण, घ्राणेन्द्रिय प्रत्यक्ष प्रमाण, रसेन्द्रिय प्रत्यक्ष प्रमाण, स्पर्शेन्द्रिय प्रत्यक्ष प्रमाण, । नो इन्द्रिय प्रत्यक्ष प्रमाण के दो भेद (१) देशसे २ सर्वसे। जिस्मे देशसेका दो भेद अवधिज्ञान प्रत्यक्ष प्रमाण, मनःपर्यव ज्ञान प्रत्यक्ष प्रमाण, सवसेका एक भेद