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पद्रव्याधिकार. ( १९५ ) काय मानेः, जीवाजीवको चलन सहायता देते हुवे को ऋजुसूत्र नय धर्मास्तिकाय माने एवं अधर्मास्तिकाय, परन्तु ऋजुसूत्रनय स्थिर और आकाशास्तिकाय में ऋजुसूत्रनय अवगाहान. पुद गलास्तिकाय में ऋजुसूत्र-गलन मीलन-और कालमें ऋजुसूत्रनय वर्तमान गुणकों काल माने । जीवद्रव्य, नैगमनय नाम जीवकों नीव माने. संग्रहनय असंख्यात प्रदेशकों जीव माने व्यवहारनय त्रस स्थावर जीवोंकों जीव माने. ऋजुसूत्रनय सुख दुःख भोगवते हुवे जीवोंको जीप माने. शद्वनय वाला क्षायक सम्यक्त्व को जीव माने. संभिरूढनय वाला केवलज्ञानीकों जीव माने. एवंभूतनयवाला सिद्धोंको जीव माने ।
(११) निक्षेपद्वार-धर्मास्तिकायका नाम हे सो नाम निक्षेप है, धर्मास्तिकाय कि स्थापना (प्रदेशों) तथा धर्मास्तिकाय ऐसा अक्षर लिखना उसे स्थापना निक्षेप कहते है जहांपर धर्मास्तिकाय हमारे उपयोगमें अर्थात् सहायता न दे वह द्रव्य धर्मास्तिकाय और हमारे उपभोग में आवे उसे भाव धर्मास्तिकाय कहते है । एवं अधर्मास्तिकाय के भी च्यार निक्षेप परन्तु भावनिक्षेप स्थिरगुणमें वर्ते एवं आकाशास्तिकाय परन्तु भावनिक्षेपअवग्गहान गुणमे वतै। जीवास्तिकाय उपयोग शून्यकों द्रव्यनिक्षेप और उपयोग संयुक्त को भावनिक्षेप एवं पुद्गलास्तिकाय परन्तु गलन मीलन को भाव निक्षेप कहते है एवं काल द्रव्य परन्तु भाव निक्षेपे जीवाजीव कि स्थितिको पुरण करते हुवे को भावनिक्षेप कहते है।
(१२) गुणद्वार-पद्रव्यों में प्रत्येक च्यार च्यार गुण है। धर्मास्तिकाय-अरूपी अचैतन्य अक्रिय चलन । अधर्मास्तिकाय , , , स्थिर । आकाशास्तिकाय ,,
अवगाहान।