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जीवास्तिकाय
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अनंत - ज्ञान
पुद्गलास्ति - रूपी काल द्रव्य -अरूपी अचतन्य अक्रिय वर्तन
शीघ्रबोध भाग ३ जो.
चैतन्य अक्रिय दर्शन चारित्र
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(१३) पर्यायद्वार षद्रव्यों कि प्रत्येक च्यार व्यार पर्याय है । धर्मद्रव्य स्कन्ध देश प्रदेश अगुरु लघु
अधर्मद्रव्य
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उपयोग ।
वीर्य
अचैतन्य - सक्रिय गलनपूरण
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आकाशद्रव्य
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जीवद्रव्य अन्याबाद अनावग्गहान अमूर्त अगुरुलघु पुद्गलद्रव्य वर्ण गन्ध रस स्पर्श भविष्य वर्तमान
कालद्रव्य भूत
(१४) साधारणद्वार - जो धर्म एक द्रव्यमें है वह धर्म दुसरा द्रव्य में मीले उसे साधारण धर्म कहते है जैसे धर्म द्रव्य में अगुरु लघु धर्म है वह अधर्म द्रव्यमें भी है एवं षटू द्रव्य में अगुरु लघु धर्म साधारण है और असाधारण गुण जो एक द्रव्य मे गुण है वह दुसरे द्रव्य में न मोले । जैसे धर्मद्रव्य में चलन गुण है वह शेष पांचों द्रव्य में नही उसे असाधारण गुण कहते है । एवं अधर्म द्रव्य में स्थिर गुण. आकाश में अवगाहन गुण. जीवमे चैतन्य गुण पुद्गल में मीलन गुण काल मे वर्तन गुण यह सब असाधारण गुण है यह गुण दुसरे कीसी द्रव्य मे नहीं मीलते है। पांच द्रव्य अजीव परित्याग करने योग है एक जीव द्रव्य ग्रहन करने योग्य है । पांच द्रव्य अरूपी है अक पुद्गल द्रव्य रूपी है।
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(१६) स्वधर्मीद्वार - षद्द्रव्यों में समय समय उत्पाद व्यय पणा है वह स्वधर्मी है कारण अगुरु लघु पर्यायमें समय समय षट्गुण हानि वृद्धि होती है वह छहों द्रव्योमें होती है।