________________
षट्द्रव्याधिकार.
( १९९ )
अपनि कार रवाइ करे परन्तु एक दुसरेको न तो बादा करे न एक दुसरे से मीले। इसी माफिक षटू द्रव्य समझ लेना ।
( २८ ) पृच्छाद्वार - क्या धर्मास्तिकाय के एक प्रदेशकों धर्मास्तिकाय कहते है ? यहां पर एवंभूत नयसे उत्तर दिया जाता है कि एक प्रदेशकों धर्मास्तिकाय नहीं कहा जावे । एवं दो तीन च्यार पांच यावत् दश प्रदेश संख्याते प्रदेश असंख्याते प्रदेश सर्व धर्मास्तिकाय से एक प्रदेश कम होने से भी धर्मास्तिकाय नही कही जावे. तर्क - क्या कारण है ? उ-समाधान खंडे दंडको संपुरण दंड नही कहा जाते है एव खंड छत्र. त्रख चम्र. चक्र इत्यादि जहां तक संपुरण वस्तु न हो वहां तक एवंभूतनय उन वस्तुकों वस्तु नही माने इस वास्ते संपुरण लोक व्यापक असंख्यात प्रदेशी धर्मास्तिकाय को धर्मास्तिकाय कहते हैं एवं अधर्मास्तिकाय एवं आकाशास्तिकाय परन्तु प्रदेश अनंत कह ना एवं जीव पुद्गल और काल समझना ।
लोकका मध्य प्रदेश रत्नप्रभा नाम पहली नरक १८०००० योजनकी है उनके निचे २०००० योजनकी घणोदधि. असंख्यात योजनाका घणवायु असंख्यात योजनका तनवायु उनोंके निचे जो असंख्यात योजनका आकाश है उन आकाशके असंख्यातमें • भागमें लोकका मध्य प्रदेश है इसी माफीक अधो लोकका मध्य प्रदेश चोथी पङ्कप्रभा नरकके आकाश कुच्छ अधिक आदा चलेजानेपर अधो लीकका मध्य प्रदेश आता है । उर्ध्व लोकका मध्य प्रदेक पांचवा देवलोकके तीजा रिष्टनामका परतर में हैं । तीच्छ 1 लोकका मध्य प्रदेश मेरूपर्वतके आठ रूचक प्रदेशोंमे है । इसी माफीक धर्मास्तिकायका मध्य प्रदेश अधर्मास्ति कामका मध्य प्रदेश, आकाशास्ति कायका मध्य प्रदेश समझना, जीवका मध्य प्रदेश आत्मा के आठ रूचक प्रदेशों मे है, कालका मध्य प्रदेश वर्तमान समय है ।