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भाषाधिकार.
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(३) भाषाका संस्थान बज्रसा है कारण भाषाका पुद्गल है वह बज्रके संस्थानवाला है.
(४) भाषा के पुद्गल उत्कृष्ट लोकान्त तक जाते है।
(५) भाषा दो प्रकारकी है पर्याप्तभाषा, अपर्याप्तभाषा, जेसे सत्यभाषा, असत्यभाषा पर्याप्ति है और मिश्रभाषा, व्यवहार भाषा अपर्याप्ति है.
(६) भाषा-समुच्चयजीव ओर तसकाय के १९ दंडकों के जीव भाषावाले है और पांच स्थावर तथा सिद्ध भगवान् अभाषक है सर्वस्तोक भाषक जीव, उनोसे अभाषक अनंतगुणे है।
(७) भाषा च्यार प्रकार की है सत्यभाषा, असत्यभाषा. मिश्रभाषा, व्यवहार भाषा, समुच्चयजीव और नरकादि १६ दंडकमें भाषा च्यारों पावे. तीन वैकलेन्द्रियमे भाषा एक व्यवहार पावे. पांच स्थावरमें भाषा नही है । एक वोल।
(८. भाषा पणे जो जीव पुद्गल ग्रहन करते है वह क्या स्थित पुद्गल याने स्थिर रहा हुवा-अथवा आत्माके अदूर स्थिर पुदगल ग्रहन करते है या-अस्थिर-चलाचल अथवा आत्मासे दूर रहे पुद्गल ग्रहन करते है ? जीव जो भाषापणे पुद्गल ग्रहन करते है वह स्थिर आत्माके नजदीक रहे पुदगलों कों ग्रहन करते है। जो पुद्गल भाषापणे नहन करते है वह द्रव्य क्षेत्र काल भावके।
. (क) द्रव्यसे एक प्रदेशी दो प्रदेशी तीन प्रदेशी यावत् दश प्रदेशो संख्यात प्रदेशी असंख्यात प्रदेशी पुद्गल बहुत सूक्ष्म होनेसे भाषा वर्गणा के लेने योग्य नही है अनंत प्रदेशी द्रव्य भाषापणे ग्रहन करते है । एक बोल
(ख) क्षेत्रसे अनंत प्रदेशी द्रव्यभी कीतनेकतों अति सूक्षम