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आहाराधिकार. (२११) लने वाले (२) मिश्र भाषा बोलनेवाले असंख्यात गुणे (३) असत्य भाषा बोलनेवाले असंख्यात गुणे (४) व्यवहार भाषा बोलनेवाले असंख्यात गुणे (५) अभाषक अनंत गुणे कारण अभाषकमें एकेन्द्रिय तथा सिद्धभगवान है इति ।
सेवंभंते सेवभंते-तमेव सच्चम्
थोकडा नम्बर २४.
सूत्र श्री पनवणाजी पद २८ वा उ० १ .
( आहाराधिकार.) (१) आहार तीन प्रकारके है सचिताहार-जीव संयुक्त पदार्थों का आहार करना अचिताहार-जीवरहित पुद्गलोंका आहार करनो, मिश्राहार जीवाजीव द्रव्योंका आहार करना. नारकी देवतोंमें अचित्त पुद्गलोंका आहार है और पांच स्थावर तीन वैकलेन्द्रिय तीर्यचपांचेन्द्रिय और मनुष्य इन दस दंडकोंमें तीन प्रकारका आहार है सचिताहार अचित्ताहार मिश्राहार।
(२) नरकादि चौवीस दंडकोंमें आहारकि इच्छा होती है.
(३) नरकमे जीवोंकों आहारकी इच्छा कीतने कालसे उत्पन्न होती है ? नरकादि सब जीवों जो अजानपणे आहारके पुद्गल खेचते है वह तो सब संसारी जीव समय समय आहार के पुद्गलोंकों ग्रहन करते है। किन्तु परभव गमन समय विग्रह गति या जीव, केवली समुद्घात और चौदवे गुणस्थानके जीव अनाहारी भी रहते है । जो जीवों को जानपणे के साथ आहार इच्छा होती