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(२०६) शीघ्रबोध भाग ३ जो. और बहु वचनापेक्षा भी २१७४९ बोल मीलानेसे ४३४९८ . भाषाके भांगे हुवे.
(१०) भाषाके षुदगल मुंहसे निकलते है वह अगर भेदाते हुवे निकलेतों रहस्ते में अनंतगुणे वृद्धि होते होते लो. कान्त तक चले जाते है तथा अभेदाते पुदगल निकले तो संख्याते योजन जाके विध्वंस हो जाते है.
(११) भाषाके पुद्गल जो भेदाते ह वह पांच प्रकारसे : भेदाते है.
(क) खंडाभेद-पत्थर लोहा काष्टके खंडवत्. (ख) परतरमेद-भोडल. अबरखवत्. (ग) चूर्णभेद-गाहु चीणा मुगमठरवत्. (च) अनुतडियाभेद-पाणीके निचेकी मट्टी शुष्कवत्. (प) उक्करियाभेद-मुग चवलोकि फली तापमें देनेसे फाटे.
इन पांचों प्रकारके भेदाते पुद्गलोंकि अल्पाबहुत्व (१) सर्वस्तोक उक्करिये भेद भेदाते पुद्गल ( २) अणुतडिये भेद भेदाते पु० अनंतगुणे (३) चूर्णिय भेद भेदाते पु० अनंतगुणे (४) परतर भेद भेदाने पु० अनंतगुणे (५) खंडाभेद भेदाते पु० अनंत गुणे । एवं समुच्चय जीव और १९ दंडक में जीस दंडक में जोतनी भाषा हो अर्थात् १६ दंडकमें च्यारों भाषा और तीन वैकलेन्द्रियमें एक व्यवहार भाषा सबमें पांचों प्रकारसे पुद्गल भेदाते है।
(१२) भाषाके पुद्गलोंकि स्थिति जघन्य एक समय. उत्कष्ट अन्तर महुर्त एवं समुच्चय जोव और १९ दंडकमे.
(१३) भाषाकों अन्तर ज० अन्तर महुर्त उ० अनंत काल कारण बनास्पतिमें चला जावे वह जीव अनंत काल वहां हो