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शीघ्रबोध भाग ३ जो.
( २९ ) स्पर्शना द्वार - धर्मास्तिकाय, धर्मास्तिकायको स्पर्श नही करते है - कारण धर्मास्तिकाय एक ही है । धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकायक संपुरण स्पर्श करी है एवं लोकाकाशास्तिकाय कों एवं जीवास्तिकायकों एवं पुद्गलास्तिकायकों. कालको कहां पर स्पर्श कीया है कहांपर न भी कीया है; कारण काल आढाइ द्विपमें ही है । एवं अधर्मास्तिकाय. अधर्मास्तिकायका स्पर्श नही करे शेष धर्मास्तिवत् एवं लोकाकाशास्ति - कारण संपुरण आकाश लोकालोक व्यापक है । अलोकाकाश शेष पांच द्रव्योंकों स्पर्श नहो करते है । एवं जीवास्तिकाय, जीवास्ति कायका स्पर्श नही कीया है, कारण जीवास्तिकायका प्रश्न होने से सब जीव समावेस होगये. शेष धर्मास्तिवत् एवं पुद्मलास्ति काय पुद्गलास्तिकायका स्पर्श नही किया शेष धर्मास्तिवत् एवं काल, कालको स्पर्श नही करे शेष पांच द्रव्योंकों आढाइ द्विप स्पर्श करे शेष क्षेत्रमें स्पर्श नही करे।
(३०) प्रदेश स्पर्शनाद्वार-धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश धर्मारिकायके कीतने प्रदेश स्पर्श करे ? जघन्य तीन प्रदेशकारण अलोककि व्याघत आनेसे लोकके चरम प्रदेशपर तीन प्रदेशोंका स्पर्श करे. उत्कृष्ठ छे प्रदेशोंका स्पर्श करे कारण व्यार दिशोंमे च्यार, अधो दिशमें एक, उर्ध्व दिशमें एक । धर्मास्ति काय अधर्मास्तिकाय के जघन्य व्यार प्रदेश स्पर्श करे उ सात प्रदेश स्पर्श करे भावना पूर्ववत् यहां विशेष इतना है कि जहां धर्म प्रदेश है वहां अधर्म प्रदेश भी है वास्ते ४-७ प्रदेश कहा है । धर्मास्तिको एक प्रदेश, आकाशास्तिका ज० सात प्रदेश, और उत्कृष्ट भी सात प्रदेश स्पर्श करे कारण आकाशके लिये अलोक कि व्याघात नही है । धर्म० एक प्रदेश. जीव पुद्गल के अनंत प्रदेश स्पर्श करते है कारण एकेक आकाशपर जीव पुट्गलके अनंत प्रदेश है । एक धर्म० प्रदेश कालके प्रदेशकों स्यात्