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( १९८) शीघ्रबोध भाग ३ जो. द्रव्य क्षेत्र में रहनेवाले क्षेत्री है अर्थात् एक आकाश प्रदेशपर धर्मास्ति अधर्मास्ति जीव पुद्गल और काल द्रव्य अपनि अपनि क्रिया करते हुवे भी एक दुसरे के अन्दर नही मीलते है।
(२२)-कियाद्वार-निश्चय नयसे षटू द्रव्य अपनि अपनि क्रिया करते है परन्तु व्यवहार नयसे जीव और पुद्गल क्रिया करते है शेष च्यार द्रव्य अक्रिय है।
(२३) नित्यद्वार--द्रव्यास्तिक नयसे षट् द्रव्य नित्य शास्वते है और पर्यायास्तिक नयसे (पर्यायापेक्षा ) षट् द्रव्य अनित्य है व्यवहार नयसे जीव द्रव्य और पुद्गल द्रव्य अनित्य है शेष च्यार द्रव्य नित्य है।
(२४) कारणबार--पांच द्रव्य है सो जीव द्रव्य के कारण है परन्तु जीव द्रव्य पांचों द्रव्यों के कारण नहीं है। जेसे जीव द्रव्य कर्ता और धर्मास्तिकाय द्रव्य कारण मीलनेसे जीव के चलन कार्य कि प्राप्ती हुइ इस माफीक सब द्रव्य समझना.
( २५ ) कर्ताद्वार-निश्चय नयसे षट् द्रव्य अपने अपने स्व. भाव कार्य के कर्ता है और व्यवहार नयसे जीव और पुदगल कर्ता हे शेष च्यार द्रव्य अकर्ता है ।
( २६ ) सर्व गतिद्वार--आकाश द्रव्य कि गति सर्व लोका लोक में है शेष पांच द्रव्य लोक व्यापक होनेसे लोक मे गति है।
( २७ ) अप्रवेश--एक आकाश प्रदेशपर धर्म द्रव्य चलन क्रिया करे. अधर्म द्रव्य स्थिर क्रिया करे. आकाश द्रव्य अव. गाहान, जीव उपयोग गुण पुद्गल गलन मीलन काल वर्तमान क्रिया करे परन्तु एक दुसरे कि गतिको रक सके नहि एक दुसरे मे मील सके नहीं जेसे एक दुकान में पांच वैपारी बैठे हुवे अपनि