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( १७६) शीघ्रबोध भाग ३ जो. केवलज्ञान नोइन्द्रिय प्रत्यक्ष प्रमाण । अर्थात् जिसके जरिये . वस्तुको प्रत्यक्ष जानी जावे उसे प्रत्यक्ष प्रमाण कहा जाते है।
(क) आगम प्रमाण-जो पदार्थका ज्ञान आगमोंद्वारा होते है उसे आगम प्रमाण कहते है उन आगम प्रमाण के बारहा भेद है आचारांगसूत्र, सूयगडायांगसूत्र, स्थानायांगसूत्र समवायांगसूत्र भगवतीसूत्र ज्ञातासूत्र उपासकदशांगसूत्र, अंतगढदशांगसूत्र अनुतरोवधाइदशांगसूत्र प्रश्रव्याकरणसूत्र विपाकसूत्र दृष्टिबादसूत्रअर्थ तीर्थकरोंने फरमाया है पुत्र गणधरोने गुंथा है इस वास्ते अर्थ तीर्थकरों के फरमाये हुवे है वह सूत्र गणधरों के अत्तागम है और सूत्रोंका अर्थ गणधरोंके अनंतरागम है और उनके शि. ज्यो के अर्थ परम्परागम है इति आगम प्रमाण
(ख) अनुमान प्रमाण-जों वस्तु अनुमानसे जानी जावे उसे अनुमान प्रमाण कहते है उन अनुमान प्रमाणके तीन भेद हे (१) पुव्वं (२) सासव (३) दिट्टि सामन्नं । जिस्मे पुर्व के च्यार भेद है जेसे कीसी माताका पुत्र बच्चपनसे प्रदेश गया वह युवक अवस्थामें पीच्छा घरपर आया, उन लडके को वह माता, पूर्व के चिन्होंसे पेच्छाने जेसे शरीर के तीलसे, ममसे. शिरसे नाकसे आंखसे तथा कीसी प्रकारके चन्हसे माता जाने कि यह मेरा पुत्र है इसी प्रकार बेहनका भाइ, त्रिका भरतार, मित्रका मित्र इनोंको अनुमान चन्हसे पेच्छाना जाय, यह पूर्व प्रमाण है दुसारा सासवं अनुमान प्रमाण के पांच भेद है कन्जेणं कारणेणं, गुणेणं, आसवेणं, अवयवेणं । जिस्मे कजे गंका च्यार भेद है. गुलगुलाट कर हस्ति जाने. हणहणाट कर अश्व जाने, झणझणाट कर रथ जाने, बलबलाट कर मनुष्य समुह जाने अर्थात् इन अनुमानसे उक्त बातों जाण सके ।
(क) कारणेणं के पांच भेद है यथा घटका कारण मट्टि है