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शीघ्रबोध भाग ३ जो.
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जब नौका कि आवश्यक्ता रहती है रत्नद्विप जाना यह कार्य हैं । और रत्नद्विप में पहुंचने के लिये नौका में बेठना वह नौका कारण है । कीसी जीव को मोक्ष जाना है उनके लिये दान शील तप भाव पूजा प्रभावना स्वामि वात्सल्य संयम ध्यान ज्ञान मौन इत्यादि सब कारण है इन कारणोसे कार्यकी सिद्धि हो मोक्षमें जा सके है। कारण कार्य के च्यार भांगा होते है ।
(क) कार्य शुद्ध कारण अशुद्ध- जेसे सुबुद्धि प्रधान-दुर्गन्ध पाणी खाइसे लाके उनोंको विशुद्ध बना जयशत्रु राजाको प्रतिवन्ध किया उन कारणमें यद्यपि अनंते जीवोंकि हिंसा हुई परन्तु कार्य विशुद्ध था कि प्रधानका इरादा राजाकोप्रतिबोध देनेका था.
(ख) कार्य अशुद्ध हैं और कारण शुद्ध जेसे जमाली अनगार ने कष्ट क्रिया तपादि बहुत ही उच्च कोटी का किया था परन्तु अपना कदाग्रह को सत्य बनाने का कार्य अशुद्ध था आखिर निन्हवों की पंक्ति में दाखल हुवा |
(ग) कारण शुद्ध ओर कार्य भी शुद्ध जेसे गुरु गौतम स्वामि आदि मुनिवर्ग तथा आनन्दादि श्रावकवर्ग इन महानुभावों का कारण तप संयम पूजा प्रभावना आदि कारण भी शुद्ध और वीतराग देवोंकी आज्ञा आराधन रूपकार्य भी शुद्ध था.
(घ) कारण अशुद्ध ओर कार्य भी अशुद्ध जेसे जीने की क्रियादि प्रवृति भी अशुद्ध है कारण यज्ञ होम ऋतु दानादि भव वृद्धक क्रिया भी अशुद्ध और इस लोक पर लोक के सुखो ff अभिलाषा रूप कार्य भी अशुद्ध है
इस वास्ते शास्त्र कारोंने कारण को मौरूयमाना है 1
(७) निश्चय व्यवहार-व्यवहार है सो निश्चय को प्रगट करनेवाला है जिनशासन में व्यवहारकों बलवान माना है करण