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शीघ्रबोध भाग ३ जो. परमाणु पुदगल, सामान्य अरूपी अजीवद्रव्य. विशेष धर्मद्रव्य अधर्मद्रव्य, आकाशद्रव्य, कालद्रव्य इत्यादि सामान्य तीर्थकर विशेष च्यार निक्षेपे नाम तीर्थकर. स्थापना तीर्थकर, द्रव्य ती. थैकर, भाव तीर्थकर सामान्य नाम तीर्थकर विशेष वीस प्रकार से तोर्थकर नाम कर्म बन्धता है, अरिहन्तोंकि भक्ति करने से सावत् समकितका उद्योत करनेसे ( देखो भाग १ लेमें वीस बोल) सामान्य अरिहन्तोंकि भक्ति. विशेष स्तुति गुणकीर्तन पूजा नाद- . क इत्यादि सामान्यसे विशेष विस्तारवाला है.
(११) गुण और गुणी-पदार्थमें खास वस्तु है उसे गुण कहा जाते है और जो गुणकों धारण करनेवाले है उसे गुणी कहा जाता है. यथा-गुणी जीव और गुणज्ञानादि, गुणी अजीव गुणवर्णादि । गुणी अज्ञान संयुक्त जीव, गुणमिथ्यात्व, गुणीपुष्प, गुणसुगन्ध, गुणीसुवर्ण, गुणपीलात-कोमलता, गुणी और गुण भिन्न नहीं है अर्थात् अभेद है।
(१२) ज्ञेय ज्ञान ज्ञानी-ज्ञेय जो जगतके घटपटादि पदार्थ है उसे ज्ञेय कहते है, उनोंका जानपणा वह ज्ञान और जाननेवाला वह ज्ञानी है. ज्ञानी पुरुषोंके लिये जगतके सर्व पदार्थ वैराग्यका ही कारण है कारण इष्ट अनिष्ट पदार्थ सब शेय-जाननेलायक हैं सम्यक्ज्ञान उनीका नाम है कि इष्ट अनिष्ट पदार्थोंको सम्यक्प्रकारसे यथार्थ जानना. इसी माफीक ध्येय, ध्यान ध्यानी-जी जगतके सर्व पदार्थ है वह ध्येय है, जिस्का ध्यान करना वह ध्यान है और ध्यानके करनेवाला वह ध्यानी है।
(१३) उपन्नेवा, विगन्नेवा, धूवेवा-उत्पन्न होना, विनाश होना, ध्रुवपणे रहना. यह जगतके सर्व जीवाजीव पदार्थमें एक समयके अन्दर उत्पात व्यय धूष होते है जेसे सिद्ध भगवान ने