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निगोदस्वरूपाधिकार.
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समय है अर्थात् आस्ति नास्ति एक समय में है परन्तु है अवक्तव्य । कारण वचनके योग से वक्तव्यता करनेमें असंख्यात समय लगते है वास्ते एक समय अस्तिनास्ति का व्याख्यान हो नही सकते है । इसी माफीक जीवादि सर्व पदार्थों पर सप्तभंगी लग सक्ती है । यह बात खास ध्यान में रखना चाहिये कि जहां स्वगुणकी अस्ति होगें वहां परगुणकि नास्ति अवश्य है । इति
(२५) निगोदस्वरूपद्वार- निगोद दो प्रकार की है ( १ ) सूक्ष्म निगोद ( २ ) बादर निगोद. जिसमें बादर निगोद जैसे कन्दमूल कान्दा मूला आलु रतालु पींडालु आदो अडवी सूवर्ण कन्द वज्रकन्द सकरकन्द निलण फूलण लसणादि इनोंमे अनन्त जीवोंका पंड है और जो सूक्षम निगोद है सो दो प्रकार कि है (१) व्यवहाररासी (२) अव्यवहाररासी जिसमें अव्यवहाररासी है यह तो अभीतक बादर पाणेका घर देखाही नहीं है उन जीवों की शखकाने कोसी प्रकारकी गणती में व्याख्या करोभी नहीं है जो अठाणु बोलादि अल्पाबहुत्व है उनमें जो जीवोंकि अल्प बहुत्व बतलाइ है वह सब व्यवहाररासी की अपेक्षा है उन व्यवहार रासीसे जीतने जीव मोक्ष जाते है व उतने ही जीव अ
हाररासी से निकल व्यवहाररासी में आजाते है वास्ते व्यवहाररासीमें जीव कम नही होते है । व्यवहाररासी कि जो लूक्षम निगोद है उनका स्वरूप इस माफीक है ।
सूक्षम निगोद के गोले संपूर्ण लोकाकाशमें भरा हुवा है एकभी आकाश प्रदेश पसा नही है कि जीसपर पुक्षम निगोदके गोले न हों. संपूर्ण लोकका एक घन बनाने से सात राज का घन होता है उनसे एकसूची अंगुलक्षेत्र के अन्दर असंख्यात श्रेणि है एकेक श्रेणिमें असंख्या २ परतर है । एकेक परतर में अ