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शीघ्रबोध भाग ३ जो. (१) नामद्वार--धर्मास्तिकायद्रव्य, अधर्मास्तिकायद्रव्य, आकाशास्तिकायद्रव्य, जीवास्तिकायद्रव्य, पुद्गलास्तिकायद्रव्य और कालद्रव्य.
(२) आदिद्वार-द्रव्यकी अपेक्षा षद्रव्य अनादि है. क्षेत्रकी अपेक्षा जो लोकव्यापक षद्व्य है. वह सादि है, एक आकाशानादि है कालकी अपेक्षा षद्रव्य अनादि है और भावापेक्षा षट्द्रव्यमें अगुरु लघु पर्यायका समय समय उत्पात व्ययापेक्षा सादि सान्तहै । यद्यपि यहां क्षेत्रापेक्षा कहते है कि इस जम्बुद्विपके म. ध्यभागमें मेरुपर्वत है उनोंके आठ रूचक प्रदेश है उनके संस्थान निचे च्यार प्रदेश उनोंके
आठ उपर विषम याने दो दो प्रदेशपर एकेक प्रदेश रहा
रूचक. हुवा है, उन रूचक प्रदेशोंसे धर्मास्तिकायकि दो प्रदेशोंसे
/प्रदेशको आदि है और फीर दो दो
स्थापना. प्रदेश वृद्धि होती हुइ लोकान्त तक'असंख्यात प्रदेशी चौतर्फ गइ है. एवं अधर्मास्तिकाय. एवं आकाशास्तिकाय परन्तु अलोकमें 'अनंतप्रदेशी भी ह अधो उर्ध्व च्यार च्यार प्रदेशी है जीवका आदि अन्त नहीं है सर्व लाकव्यापक है. पुद्गलास्तिकाय सर्व लोकव्यापक है. कालद्रव्य प्रवर्तन रुप तो आढाइ द्विपमें ही है, कारण आढाइ द्विपके चन्द्र सूर्य चर ह और जीवपुद्गलकी स्थिति पूर्णरुप संपुर्ण लोकमें है!
(३) संस्थानद्वार-धर्मास्तिकायका संस्थान गाडाका ओ. धणकी माफीक है कारण दो प्रदेश आगे च्यार, च्यार आगे छे,