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उपचाराधिकार. (१८५) (१) द्रव्यमें द्रव्यका उपचार जेसे काष्टमें वंशलोचन. (२) द्रव्यमें पर्यायका उपचार यह जीव ज्ञानवन्त है. (३ द्रव्यमें पर्यायका उपचार यह जीव सरूपवान है. (४) गुणमें द्रव्यका उपचार-अज्ञानी जीव है. (५ गुणमें गुणका उपचार-ज्ञानी होनेपरभी क्षमाबहुतहै. . ६) गुणमें पर्यायका उपचार-यह तपस्वी बडे रूपवन्त है (७) पर्यायमें द्रव्य का उपचार-यह प्राणी देवतोका जीव है (८) पर्याय में गुणका उपचार-यह मनुष्य बहुत ज्ञानी है. ( ९) पर्याय में पर्यायका उपचार-मनुष्य श्यामवर्णका है.
(( २३ ) अष्टपक्ष-एक वस्तुमें अपेक्षा ग्रहनकर अनेक प्रका. रकि व्याख्या हो सक्ती है, जेसे नित्य, अनित्य, एक, अनेक, सत् , असत्, वक्तव्य, अबक्तव्य. यह अष्टपक्ष एक जीवपर निश्चय और व्यवहारकि अपेक्षा उतारे जाते है यथा___ व्यवहारनय कि अपेक्षा जीस गतिमें उदासि भावमें वर्तता हुवा नित्य है और समय समय आयुष्य क्षीण होनेकि अपेक्षा अनित्य भी है। निश्चयनयकि अपेक्षा ज्ञान दर्शन चारित्रापेक्षा नित्य है और अगुरु लघु पर्याय समय समय उत्पात व्यय होनेकि अपेक्षा अनित्य भी है। _ व्यवहार नयमें जीस गतिमें जीव उदासिभावमें वर्तता हुधा एक है और दुसरे माता पिता पुत्र खि बन्धबादिकि अपेक्षा आप अनेक भी है। निश्चयनयापेक्षा सर्व जीवोंका चैतन्यता गुण एक होनेसे आप एक है और आत्माके असंख्यात प्रदेश तथा एकेक प्रदेशमें गुण पर्याय अनंता अनंत होनेसे अनेक भी है।