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क्रियाधिकार.
( १४३ )
योग, सत्तरा दंडकके जीव चक्षु इन्द्रिय, अठारा दंडकके जीव घ्राणेन्द्रिय उन्नीस दंडकके जीव रसेन्द्रिय, और वचनके योग उत्पन्न करते हुवेको स्यात् तीन क्रिया स्यात् च्यार क्रिया स्यात् पांच क्रिया लगती है ।
समुच्चय एक जीवकों एक औदारीक शरीर कि कीतनी क्रिया लागे ? स्यात् तीन क्रिया स्यात् व्यार क्रिया स्यात् पांच क्रिया स्यात् अक्रिया, एवं एक जीवने घणा औदारीक शरीरकी घणा जीवोंकों एक औदारीक शरीर की घणा जीवोंकों घणा औदारीक शरीरकी, घणी तीन क्रिया घणी च्यार क्रिया घणी पांच क्रिया घणी अक्रिया । एक नारकीके जीवकों औदारीक शरीरकि स्यात् ३-४-२ क्रिया, एवं एक नारकीने घणा औदारीक शरीरकी घृणा नारकीकों एक औदारीक शरीरकी और घणा नारकीकों घणा औदारीक शरीरकी वणी ३-४-२ क्रिया लागे. एवं चौवीस दंडक मीलाके १०० भांगे हुवे. इसी माफीक जीव और वैक्रिय शरीर परन्तु क्रिया ३-४ एवं आहारीक शरीर क्रिया ३-४ लागे कारण वैक्रिय आहारीक शरीर के उपक्रम लागे नही. तेजस - कारमण शरीरके ३-४-५ क्रिया, एकेक शरीर से समुच्चय जीव और चौवीस दंडक पचवीसकों च्यार गुणा करनेसे १०० सो भांगे हुवे एवं पाच शरीरके ५०० सो भांगे समझना ।
एक मनुष्य मृगकों मारते हैं उनोकि निष्पत् नौ जीवोंकों पांच पांच क्रिया लगती है जेसे मृग मारनेवाले मनुष्यकों, धनुष्य जो बांस से बना है उन वांसके जोव अन्य गतिमें उत्पन्न हुवे है वह व्रत प्रत्याख्यान नही कीया हो तो उनके शरीर से धनुष्य बना है वास्ते मृग मारने में वह धनुष्य भी सहायक होने से उन नीवोंको भी पांच क्रिया लगती है ।