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नयाधिकार.
( १५१ )
संक्षिप्त सार लिख आपसे निवेदन करते है कि इस नयादिकों कण्ठस्थ कर फीर विवेचनवाले ग्रंथ पढो ।
( १ ) नयाधिकार
( १ ) नय-वस्तु के एक अंश को गृहन कर वक्तव्यता करना उनकों नय कहते है जब वस्तुमें अनंत ( पर्याय ) अंश है उनोंकि वक्तव्यता करने के लिये नयभी अनंत होना चाहिये ? जीतना वस्तु धर्म (स्वभाव) है उनोंकि व्याख्या करनेको उतनाही नय है परन्तु स्वल्प बुद्धिवालों के लिये अनंत नयका ज्ञानकों संक्षिप्त कर सात नय बतलाया है । अगर नैगमादि एकेक नय से ही एकांत पक्ष ग्रहन कर वस्तुतत्वका निर्देश करे तो उनोंकों नयाभास ( मिथ्यात्वी ) कहा जाता है कारण वस्तुमें अनंतधर्म है उनक व्याख्या एकही नयसे संपुरण नही होसकती है अगर एक नय से एक अंशकि व्याख्या करेंगे तो शेष जो धर्म रहे हुवे है उनका अभाव होगा। इसी वास्ते शास्त्रकारोंका फरमान है कि एक वस्तुमें एकेक नयकि अपेक्षा से अलग अलग धर्मकि अलग अलग व्याख्या करनासेही सम्यक् ज्ञानकि प्राप्ती हो सके उनोंकाही सम्यग्दृष्टि कहाजाते हैं.
इसपर हस्ती और सात अंधे मनुष्यका दृष्टान्त - एक ग्राम के बाहार पहले पहलही एक महा कायावाला हस्ति आयाथा उन समय ग्रामके सब लोग हस्ति देखनेकों गये उन मनुष्यों मे सात अन्धे मनुष्य भीथे । उनोंसे एक अन्धे मनुष्यने हस्तिके दान्ताशूलपे हाथ लगाके देखाकि हस्ति मूशल जेसा होता है दूसरेने शुंढपर हाथ लगाके देखा कि हस्ति हडूमान जेसा होता है तीसराने कांनोपर हाथ लगाके देखाकि हस्ति सुपडे जेसा होता है चोथाने उदरपर हाथ लगाके देखाकि हस्ति कोटी जेसा