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(१५२) शीघ्रबोध भाग ३ जो. होता है पांचवाने पैरोंपर हाथ लगाके देखाकि हस्ति स्तम जेसा होता है छट्ठाने पुच्छपर हाथ लगाके देखाकि हस्ति चम्र जैसा होता है सातवाने कुम्भस्थलपर हाथ लगाके देखाकि हस्ति कुम्भ जेसा है हस्तिकों देख ग्राम के लोग ग्राममें गये और वह सातों अन्धे मनुष्य एक वृक्ष निचे बेठे आपसमें विवाद करने लगे अपने अपने देखे हुवे एकेक अंगपर मिथ्याग्रह करने लगें एक दूसरोंको जूठे बनने लगे इतने में एक सुज्ञ मनुष्य आया और उन सातों अन्धे मनुष्योंकि बातों सुन बोला के भाइ तुम एकेक वातको आग्रहसे तांनते हो तबतों सबके सब झूटे हों अगर मेरे कहने माफीक तु. मने एकेक अंगहस्तिके देखे है अगर सातों जनों सामीलहो विचार करोंगे तो एकेकापेक्षा सातों सत्य हो। अन्धोने कहा की केसे? तब उन सुज्ञ विद्वानने कहाकी तुमने देखा वह हस्तिका दान्ताशूल है दूसराने देखा वह हस्तिकि शृंड हैं यावत् सातवाने देखा वह हस्ति के पुच्छ है इतना सुनके उन अन्ध मनुष्योंको ज्ञान होगया कि हस्ति महा कायावाला है अपने जो देखा था वह हस्तिका एकेक अंग है इसका उपनय-वस्तु एक हस्ति माफीक अनेक अंश (विभाग) संयुक्त है उनको माननेवाले एक अंगको मानके शेष अं. गका उच्छेद करनेसे अन्धे मनुष्योंके कदाग्रह तूल्य होते है अगर संपुरण अंगोंकों अलग अलगअपेक्षासे माना जावे तो सुज्ञ मनुव्यकि माफीक हस्ती ठीकतोरपर समज सकते है इति.
नय के मूल दो भेद है ( १ ) द्रव्यास्तिक नय जो द्रव्यकों ग्रहन करते है (२. पर्यायास्तिक नय वस्तुके पर्यायकों गृहन करे। जिस्मै द्रव्यास्तिक नयके दश भेद है यथा नित्य द्रव्यास्तिक. एक द्रव्यास्तिक, सत् द्रव्यास्तिक, वक्तव्य द्रव्यास्तिक, अशुद्ध द्रव्यास्तिक, अन्वय द्रव्यास्तिक, परम द्रव्यास्तिक, शुद्धद्रव्या