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(१५४) शीघबोध भाग ३ जो. कालमें वस्तुका अस्तित्व भाव माने जिन नैगमनय के तीन भेद. है ( १ ) अंश. (२) आरोप (३) विकल्प ।
(क) अंश-वस्तुका एक अंशकों ग्रहन कर वस्तुको वस्तुमाने शेष निगोदीये जीवोंकों सिद्ध समान माने कारण निगोदीये जीवों के आठ रूचक प्रदेश+ सदैव निर्मल सिद्धों के माफीक है इस वास्ते एक अंशकों ग्रहन कर नैगमनयवाला निगोदीये जीवोंकोभी सिद्ध ही मानते है। तथा चौदवे अयोगी गुणस्थानधाले जीवों को संसारी जीव माने; कारण उन जीवोंके अभीतक चार अघाति कर्म बाकी है अन्तर महुर्त संसार बाकी है उतने अंशकों ग्रहन कर चौदवे गुणस्थानक वृति जीवोंको संसारी माने यह नैगम न्यका मत है।
(ख) आरोप-आरोपके तीन भेद है (१) भूत कालका आरोप (२) भविष्य कालका आरोप (३) वर्तमान कालका आरोप जिस्मेभूत कालका आरोप जेसे भूतकालमें वस्तु हो गइ है उनको वर्तमान कालमें आरोप करना. यथा-भगवान् वीरप्रभुका जन्म चैत्र शुक्ल १३ के दिन हुवा था उनका आरोप, वर्तमान का. लमें कर पर्युषण में जन्म महोत्सव करना उनोंकी मूर्ति स्थापनकर सेवा पूजा भक्ति करना तथा अनंते सिद्ध हो गये है उनोंके नामका स्मरण करना तथा उनोंकि मूर्ति स्थापन कर पूजन करना यह सब भूतकालका वर्तमानमें आरोप है ( २ ) भविष्यकाल में होने वालोका वर्तमान कालमें आरोप करना जेसे श्री पनाम ___+ श्री नन्दीजी सूत्रमें कहा है कि जीवोंके अक्षर के अनन्त में भाग में कर्म दल नही लागे यह ही जीवका चैतन्यता गुण है अगर वहां भी कर्म लग जावे तों जीवका अजीव हो जाते हैं परन्तु यह कभी हुवा नही और होगा भी नही इस वास्ते ८ रुचक प्रदेश सदैव सिद्ध समान गीना जाते हैं