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निक्षेपाधिकार.
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गया है अर्थात् जो काम कर रहा है उन काम को नही जानता है तथा उनके मतलब को नही जानता है वह सब द्रव्यकार्य है इति आगमसे द्रव्य निक्षेपा.
नोआगमसे द्रव्य निक्षेपा के तीन भेद है (१) जाणगशरीर (२) भविय शरीर (३) जाणग शरीर, भविय शरीर वितिरक्त । जिस्में जाणगशरीर जेसे कोइ श्रावक कालधर्म प्राप्त हुवा उनका शरीर का चन्ह चक्र देख कीसीने कहा कि यह श्रावक आवश्यक जानता था-करता था-जेसे कीसी घत के घडा को देख कहाकि यह घृतका घडा था तथा मधुका घडा था। दूसरा भाविय शरीर जेसे कीसी श्रावक के वहां पुत्र जन्मा उनका शरीरादि चिन्ह देख कीसी सुज्ञने कहा कि यह बच्चा आवश्यक पढेगेकरेगे जेसे घट देख कहाकी यह घट घृतका होगा यह घट मधुका होगा। तीसरा जाणग शरीर भविय शरीरसे वितिरक्तके तीन भेद है लौकीक द्रव्यावश्यक, लोकोत्तर द्रव्यावश्यक, कुप्रवचन द्रव्य आवश्यक । लौकीक द्रव्यावश्यक जो लोक प्रतिदिन आवश्य करने योग्य क्रिया करते है जेसे राज राजेश्वर युगराजा तलवर मांडवी कौटुम्बी सेठ सेनापति सार्थवाह इत्यादि प्रातः उठ स्नान मजन कर केशर चन्दन के तीलक लगाके राजसभाम नावे इत्यादि अवश्य करने योग्य कार्य करे उसे लौकीक द्रव्यावश्यक कहते है और लोकोत्तर द्रव्यावश्यक जेसे..
जे इमे समणगुणमुक्क जोगी-लोकमें गुणरहीत साधु. छक्काय निरण्णु कम्पा-छेकाया के जीवोंकी अनुकम्प रहित. हयाइवउदंमा-विगर लगामके अश्वकी माफीक. गयाइव निरंकुसा-निरंकूश हस्तिकि माफीक. घठा-शरीर पनाविकों वारवार धोवे धोवावे ।