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नयाधिकार.
( १५५) तीर्थकर उत्सपिणी कालमें होंगे उनोंको (ठाणायांगजी सूत्र के नौवे ठाणेमें ) तीर्थकर समझ उनोंकी मूर्ति स्थापनकर सेवाभक्ति करना तथा मरीचीयाके भवमें भावि तीर्थकर समझ भरतमहाराज उनको धन्दन नमस्कार कीयाथा. यह भविष्यकालमें होने वालोंका वर्तमानमें आरोप करना (३) वर्तमान में वर्तती वस्तुका आरोप जेसे आचार्योपाध्याय तथा मुनि मत्तंगोंके गुण कीर्तन करना यह वर्तमानका वर्तमानमे आरोप है तथा एक वस्तुमे तीन कालका आरोप जेसे नारकी देवता जम्बुद्विप मेरुगिरी देवलोको में सास्वते चैत्य-प्रतिमा आदि जोजो पदार्थ तीनो कालमें सास्व ते है उनका भूतकालमें थे भविष्यमें रहेंगे वर्तमान मे वर्त रहें हे एसा व्याख्यान करना यह एकही पदार्थ मे तीनों कालका आरोप हो सकते है.
(ग) विकल्प-विकल्पके अनेक भेद है जेसे जेसे अध्यवसाय उत्पन्न होते है उनको विकल्प कहेते है द्रव्यास्तिक और पर्यायास्तिक नयके विकल्प ७०० होते है वह नय चक्र सारादि ग्रंथ से देखना चाहिये, उन नैगमनयका मूल दो भेद है ( १ ) शुद्ध नैगमनय (२) अशुद्ध नैगमनय जिसपर वसति-पायली-और प्रदेशका दृष्ठांत आगे लिखाजावेगा उसे देखना चाहिये।
(२) संग्रहनय-वस्तुकि मूल सत्ता को ग्रहन करे जेसे जीवों के असंख्यात आत्म प्रदेश में सिद्धो कि सत्ता मोजुद है इस वास्ते सर्व जीवो को सिद्ध सामान्य माने और संग्रह-संग्रह वस्तुको ग्रहन करनेवाले नयकोसंग्रहनय कहते है यथा 'एगे आयो-पगे अणाया' भावार्थ-जीवात्मा अनंत है परन्तु सबजीव सातकर असंख्यात प्रदेशी निर्मल है इसी वास्ते अनन्त जीवोका संग्रह कर 'एगे आया कहते है एवं अनंत पुदगलामें सडन पडण विध्वंसन स्वभाव होनेसे 'एगे अणाया' संग्रह नय वाळा सामान्य माने विशेष नही