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( १६२) शीघबोध भाग ३ जो. के प्रदेश है कारण एसा कहनेसे यह शंका होगी कि वह पांचों प्रदेश धर्मास्तिकायका होगा। यावत् पांचों प्रदेश ‘स्कन्धके होंगे एसे २५ प्रदेशोंकी संभावना होगी. इस वास्ते एसा कहो कि स्यिात् धर्मास्तिकायका प्रदेश यावत् स्यात् स्कन्धका प्रदेश है। इस पर शब्दनयवाला बोला कि एसा मत कहों कारण एता कहनेसे यह शंका होगी कि स्यात् धर्मास्तिकायका प्रदेश है वह स्यात् अधर्मास्तिकायका प्रदेश भी हो सकेगें इसी माफोक पांचों प्रदेशोंके आपसमें अनवस्थित भावना हो जायगी इस वास्ते एसा कहो कि स्यात् धर्मास्तिकायका प्रदेश सो धर्मास्तिकायका प्रदेश है एवं यावत् स्यात् स्कन्ध प्रदेश सो स्कन्धका ही प्रदेश है। इसी माफीक शब्दनयवाला के कहने पर संभिरूढनयवाला बोला कि एसा मत कहो यहांपर दो समास है तत्पुरुष और कर्मधारय जोतत्पुरुषसे कहो तो अलग अलग कहो और कर्मधारसे कहो तो विशेष कहो कारण जहां :धर्मास्तिकायका एक प्रदेश है वहां जीव पुद्गलके अनंत प्रदेश है वह सब अपनि अपनि क्रिया करते है एक दुसरे के साथ मीलते नही है इस पर एवं भूतवाला बोला कि तुम एसे मत कहो कारण तुम जो जो धर्मास्तिकायादि पदार्थ कहते हो वह देश प्रदेश स्वरूप हे हो नही. देश है वह भी कीसीका प्रदेश हे वह भी कोसीके एक समय में स्कन्ध देश प्रदेशकी व्याख्या हो ही नही सक्ती है वस्तु भाव अभेद है अगर एक समय धर्मद्रव्य कि व्याख्या करोगे तो शेष देश प्रदेशादि शब्द निरर्थक हो जायगें तो एसा करते ही क्यो हो एक ही अभेद भाव रखो इति ।।
जीवपर सात नय-नैगमनय, जीव शब्दकों ही जीव माने. संग्रहनय सत्तामें असंख्यान प्रदेशी आत्माको जीव मानें इसने अजीवात्माकों जीव नही माना, व्यवहारनय तस थावर के भेद