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शीघ्रबोध भाग ३ जो.
दोष समझा. ऋजुसूत्रनयवाला अपने कर्मोंका दोष समझा. शब्द नयवाला कर्मोंके कर्ता अपने जीवका दोष समझा, संभिरूढनयवालाने भवितव्यता याने ज्ञानीयोंने अनंतकाल पहले यह ही भाव देख रखाथा एवंभूत कहता है कि जीवकों तों सुख दुःख है ही नही. जीवतों आनन्दघन है ।
राजा उपर सात नय. नैगमनयवाला कोसीके हाथो पगो में राजचिन्ह रेखा तील मसादि चिह्न देखके राजा माने. संग्रहनय : वाला राजकुलमें उत्पन्न हुवा बुद्धि, विवेक, शौर्यतादि देख राजा माने. व्यवहारनयवाला युवराज पदवालेकों राजा माने. ऋजुसूत्रनयवाले राजकार्य में प्रवृत्तनेसे राजा माने. शब्दनयवाला सिंहासनपर आरूढ होनेपर राजा माने, संभिरूढनयवाला राज अवस्थाकी पर्याय प्रवृत्तनरूप कार्य करते हुवेको राजा माने. एवंभूतनय उपयोग सहित राज भोगवतों दुनियों सर्व मंजुर करे, राजाकी आज्ञा पालन करे, उन समय राजा माने. इसी माफीक सर्व पदार्थोंपर सात सात नय लगा लेना इति नयद्वार ।
( २ ) नक्षेपाधिकार.
एक वस्तु में जेसे नय अनंत है इसी माफीक निक्षेपा भी अनंत है कहा है कि-" जं जत्थ जाणेजा, निक्खेवा निक्खेषण ठवे; जं जत्थ न जाणेज, चत्तारी निक्खेवण ठवे." भावार्थ- जहां पदार्थ के व्याख्यान में जीतने निक्षेप लगा सके उतने हो निक्षेप से उन पदार्थका व्याख्यान करना चाहिये कारण वस्तुमें अनंत धर्म है वह निक्षेपों द्वारा ही प्रगट हो सके । परन्तु स्वल्प बुद्धिवाले aat अगर ज्यादा निक्षेप नहीं कर सके; तथापि च्यार निक्षेपों के साथ उन वस्तुका विवरण अवश्य करना चाहिये । प्रश्न ) जब नयसे ही वस्तुका ज्ञान हो सकते है तो फीर निक्षेपे कि क्या