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(१६६) शीघ्रबोध भाग ३ जो. और अरिहन्तोंकि स्थापना (मूर्ति ) सिद्धोंका नाम और सि. डोंकि स्थापना एवं आचार्योपाध्याय साधु, ज्ञान, दर्शन, चारित्र इत्यादि जेसा गुण पदार्थ में है वैसे गुणयुक्त स्थापना करना उसे सत्यभाष स्थापना कहते है और असत्यभाव स्थापना जेसे गोल पत्थर रखके भेरूकि स्थापना तथा पांच सात पत्थर रख शीतलामाताकि स्थापना करनी इसमें भेरू और शीतलाका आकार तौ नही है परन्तु नामके साथ कल्पना देवकी कर स्थापना करी है.
इस वास्ते ही सुज्ञ जन स्थापना देवकी आशातना टालते है जिस रीतीसे आशातना का पाप लगता है इसी माफीक भक्ति करनेका फल भी होते है उस स्थापनाका दश भेद है (सूत्र अनुयोगद्वार।
(१) कठकम्मेवा -काष्टकि स्थापनाजेसेआचार्यादिकि प्रतिमा. (२) पोत्थ कम्मेवा-पुस्तक आदि रखके स्थापना करना. (३) चित्त कम्मेवा-चित्रादिकरके स्थापना करना. (४) लेप्प कम्मेवा-लेप याने मट्टी आदिके लेपसे ।। (५) वेडीम्मेवा-पुष्पोंके बीटसे बीटकों मीलाके स्था० ॥ (६) गुंथीम्मेवा-चीढो प्रमुक को प्रथीथ करना । (७) पुरिम्मेवा-सुवर्ण चान्दी पीतलादि वरतका काम. (८) संघाइम्मेवा-बहुत वस्तु एकत्र कर स्थापना. (९) अखेइवा-चन्द्राकार समुद्र के अक्षकि स्थापना.
(१०) बराडवा-संस्ख कोडी आदि की स्थापना. . एवं दश प्रकार की सद्भाव स्थापना और दशप्रकारकी असदभाव स्थापना एवं २० एकेक प्रकार की स्थापना एवं वीस