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नयाधिकार.
( १९३)
स्तिक, सत्ताद्रव्यास्तिक, परम भाव द्रव्यास्तिक । पर्यायास्तिकनयके छे भेद है द्रव्य पर्यायास्तिक, द्रव्यवञ्जनपर्यायास्तिक गुणपर्यायास्तिक, गुणवानपर्यायास्तिक, स्वभाव पर्यायास्तिक, विभाषपर्यायास्तिकनय । इन द्रव्यास्तिक पर्यायास्तिक दोनों नयों के ७०० मांगे होते है। ___ तर्कवादि श्रीमान् सिद्धसेनदिवाकरजी महाराज द्रव्यास्ति कनय तीन मानते है नैगमनय, संग्रहनय, व्यवहारनय, और सिद्धान्तवादी श्रीमान् जिनभद्रगणी खमासमणा द्रव्यास्तिनय च्यार मानते है नंगमनय संग्रहनय व्यवहारनय रूजुसूत्र नय । अपेक्षासे दोनों महा ऋषिों का मानना सत्य है कारण ऋजु सूत्र नय प्रणाम ग्रही होनेसे भावनिक्षेपा के अन्दर मानके उसे पर्यायास्तिक नय मानी गई है और ऋजुसूत्रनय शुद्ध उपयोग रहित होनेसे । श्री जिनभद्रगणी खमासमणजीने द्रव्यास्तिक नय मानी है दोनों मत्तका मतलब एक ही है.
नैगम, संग्रह, व्यवहार, और रूजुसूत्र, इन च्यार नयको द्रव्यास्तिक नय कहते है अथवा अर्थ नय कहते है तथा क्रियानय भी कहते है और शब्द संभिरूढ और एवंमूत इन तीनों नय को पर्यायास्तिक नय कहते है इन तीनों नयको शब्द नयभी कहते है इन तीनों नयको ज्ञान नयभी कहते है एवं द्रव्यास्तिक नय और पर्यायास्तिक नय दोनों को मीलानेसे सातनय-यथा नैगमनय. संग्रहनय व्यवहारनय ऋजुसूत्रनय. शब्दनय संमिरुढनय. एवंमूतनय. अब इन सातों नयके सामान्य लक्षण कहाजाते है।
(१) नैगमनय-जिस्का एक गम ( स्वभाव ) नही है अनेक मान उन्मान प्रमाणकर वस्तुको बस्तुमाने जेसे सामान्यमाने विशेषमाने. तीनकालकि वातमाने. निक्षेपाचार माने. तीनों