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क्रियाधिकार.
( १४९) अगर श्रावककों खान, पान, देने में पाप होतो भगवान ने पडिमाधारी श्रावकोंको भिक्षा लाना क्यों बतलाय । संख श्रावक पोखली श्रावक स्वामिवात्सल्य कर पौषद क्रिया भगवतीसूत्र १२ । १ इस शास्त्र प्रमाणसे श्रावकको रत्नोंकी मालामे सामी. लगीणा गया है इत्यादि।
पचवीस क्रिया-काइया, अधिकरणीया, पावसिया, परतावणिया, पाणाइवाइया, आरंभिया, परिगहीया, मायावत्तिया, मिच्छादरसणवत्तिया, अपञ्चखाणवत्तिया, दिठिया, पुछिया पाडुचिया, सामंतवणिया, सहत्थिया, परहत्थिया, अणवणिया, वेदारणीया, अणकक्खवत्तिया, अणभोगवत्तिया, पोग्ग क्रिया, पेज क्रिया, दोस क्रिया, समदांणी क्रिया, इरियावही क्रिया.
अलापक-सूत्र-गमा-भांगा-बोल-यह सब एकार्थी है यहांपर बोलोको भांगाके नामसे ही लीखा गया है सर्व भांगा १५४७२ हुवे है।
सूत्रोंमें जगह जगह लिखा है कि श्रावकों को " अभिगय जीवाजीव यावत् किरिया अहीगरणीयादि " अर्थात् श्रावकोंका प्रथम लक्षण यह है कि वह जीवाजीव पुन्य पापाश्रव संवर निजेरा बन्ध मोक्ष क्रिया काइयादि का जानपणा करे जब श्रावकों के लिये ही भगवान् का यह हुकम हे तो साधुवों के लिये तो कहना ही क्या इस भागमें नव तत्व और पचवीस क्रिया इतनी तो सुगम रीती से लिखी गई है की सामान्य बुद्धिवाला भी इनसे लाभ उठा सकता है इस वास्ते हरेक भाइयों को इन सब भागों को आद्योपान्त पढके लाभ लेना चाहिये । इत्यलम् ॥ शान्ति शान्ति शान्ति ॥
सेवंभंते सेवंभंते तमेव सच्चम् | इति शीघ्रबोध भाग २ जो समाप्तम् ।