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क्रियाधिकार.
( १४७ )
बज्रक्रिया - अगर कोई गृहस्थ मुनियोंके वास्ते ही मकांन कराया है कदाच मुनि उनमें न ठेरे तो गृहस्थ विचार करे कि अपने रहनेका मकांन मुनिकों देदो अपने दुसरा बन्धा लेंगे अगर पसा मकान में मुनि ठेरे तो उने बज्र क्रिया लागे ।
महावज्र क्रिया - कोइ श्रद्धालु गृहस्थ अन्य तीर्थीयोंके लिये asia बन्धाया है जिसमें भी उनोंका नाम खोलके अलग अलग मां बन्धाया हो उनमे तो साधुवोंकों उत्तरना कल्पता ही नहीं है अगर उत्तरे तो महावज्र या लागे ।
सावध किया - बहुतसे साधुवोंके नामसे एक धर्मसालादिक मकान कराया है उनमें मुनि ठेरे तो सावध क्रिया लागे. तथा एक साधुका नामसे मकान बनावे उनमें उतरे तो महा सावद्य क्रिया लागे । गृहस्थ अपने भोगवने के लिये मकांन बनाया है परन्तु साधुवोंके ठेरनेके लिये उन मकानक लीपणसे लिंपावे. छान छव!वे, छपरा करावे एसा मकान में साधुवोंको ठेरना नही कल्पे |
अगर गृहस्थ अपने उपभोग के लिये मकांन वनाया है वह निर्वद्य होने से मुनि उन मकानमें ठेरे तो उनोंको कीसी प्रकारकी क्रिया नहीं लगती है उने अल्प सावध क्रिया कहते है अल्प निषेध अर्थ में माना गया है वास्ते क्रिया नही लगती है ( आचारांग सूत्र .
क्रिया तेरहा प्रकारकी है अथदंड क्रिया अपने तथा अपने संबन्धीयों के लिये कार्य करनेमे क्रिया लगति है उसे अर्थदंड कहते है अनथदंड याने बिगर कारण कर्मबन्ध स्थान सेवन करना | हिंस्यादंड क्रिया हिंस्या करनेसे. अकस्मात् दुसरा कार्य करते विचमे विगर परिणांमोंसे पाप हो जावे. दृष्टि विपर्यास