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( १४२) शीघ्रबोध भाग २ जो. ३ || ३३ लागे ? स्यात् लागे (छटे गुणस्थान )
| स्यात् न भी लागे । अप्रमातादि गुण. स्थान ) परिग्रह, मिथ्यादर्शन, और अप्रत्याख्यानकि क्रिया नही लागे तथा मायावत्तिया क्रिया स्यात् लागे (द. शवे गुणस्थान तक) स्यात न भी लागे ( वीतरागी गुणस्थान ) एवं मृषावादादि यावत् मिथ्यादर्शन शल्यतक
अठारा पाप के त्याग किये हुवे कों स. ३/३/ ३ |१| मझना समुच्चय जीवकी माफीक मनु
व्य को भी समजना शेष २३ दंडक के
जीव १८ पापों के त्याग नही कर सकते है इतना विशेष है कि मिथ्यादर्शन के त्याग नारको देवता तीर्यध पांचेन्द्रिय एवं १५ दंडक के जीव कर सकते है उनों को मिथ्यात्वकी क्रिया नही लगती है । समुच्चय जीव चौवीस दंडक कों अठारा पापसे गुणा करनेसे ४५० भांगे हुवे। __ अल्पा बहत्व-सर्वस्तोक मिथ्यात्व कि क्रियावाले जीव है अप्रत्याख्यानकि क्रियावाले जीव विशेषाधिक है. परिग्रहकि क्रियावाले जीव विशेषाधिक है. आरंभकि क्रियावाले जीव विशेषाधिक है मायावत्तिया क्रियावाले जीवविशेषाधिक है। __ समुच्चय जीव पांच शरीर, पांच इन्द्रिय, तीनयोग उत्पन्न करते हुवे को कितनी क्रिया लगती है ? स्यात् तीन स्यात् च्यार स्यात् पांच क्रिया लगती है इसीमाफोक दशदंडकके जीव औदारीक शरीर, सतरादंडकके जीव वैक्रिय शरीर, एक मनुष्य आहारीक शरीर, चौवीस दंडकके जीव तेजस, कारमण स्पर्शेन्द्रिय और कायाका योग, शोलह दंडकके जीव श्रोत्रेन्द्रिय और मन