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(८४) शीघ्रबोध भाग २ जो. रुचकरन, अंकरत्न, स्फटिकरत्न, लोहीताक्ष, मरकतरत्न, मशारगलरत्न, भुजमोचकरत्न, इन्द्रनिलरत्न, चन्दनारत्न, गौरीकरत्न, हंसगर्भरत्न, पुलाकरत्न, सौगन्धीरत्न, अरष्टरत्न, लीलम, पीरोजीया, लसणीयारत्न, वैडूर्यरत्न, चन्द्रप्रभामणि, कृष्णमणि, सूर्यप्रभामणि जलकांतमणि इत्यादि जिसका स्वभाव कठन है जिनकी सात लक्ष योनि है. इनोंके दो भेद है, पर्याप्ता अपर्याप्ता जो अपर्याप्ता है वह असमर्थ है जो पर्याप्ता है वह समर्थ है वर्ण गन्ध रस स्पर्श कर संयुक्त है ( जहां एक पर्याप्ता है वहां निश्चय असंख्या अपर्याप्ता होते है एक चिरमी जीतनी पृथ्वीका. यमें असंख्य जीव होते है वह अगर एक महुर्तमें भव करे तो उत्कृष्ट १२८२४ भव करते है।
बादर अपकायके अनेक भेद है ओसका पाणी धूमसका पाणी कचेगडोकापाणी, आकाशकापाणी, समुद्रोंकापाणी, खारापाणो, खट्टापाणी घृतसमुद्रकापाणो खीरसमुद्रकापाणी इक्षुसमुद्रका पाणी लवणसमुद्रकापाणी कुँवे तलाव द्रह वावी आदि अनेक प्रकारका पाणी तथा सदैव तमस्काय वर्षती है इत्यादि इनोंके दो भेद है पर्याप्ता अपर्याप्ता जो अपर्याप्ता हे वहअसमय है जो पर्याप्ता है वह वर्णगन्धरस स्पर्श कर संयुक्त है एक पर्याप्ताकि नेश्राय निश्चय असंख्याते अपर्याप्ता जीव उत्पन्न होते है एक बुंदमें असं. ख्याते है वह एक महुतमें उत्कृष्ट १२८२४ भव करते है सात लक्ष योनि है।
बादर तेउकायके अनेक भेद है इंगाला मुमरा ज्वाला अं. गारा भोभर उल्कापात विद्युत्पात वडवानलाग्नि काष्टाग्नि पाषाणाग्नि इत्यादि अनेक भेद है जीनोंके दो भेद है पर्याप्ता अपर्याप्ता जो अपर्याप्ता है वह असमर्थ जो पर्याप्ता है वह वर्णगन्ध रस.