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नवतत्त्व.
( १२७) शुक्लध्यानके च्यार पाया है. एक ही द्रव्यमें भिन्न भिन्न गुणपर्याय अथवा उपनेवा विघ्नेवा ध्रुवेवा आदि भावका विचार करना, बहुत द्रव्योंमें एक भावका चितवना जेसे षद्रव्य अगुरुलघुपर्याय स्वामिताका. चिंतवना अचलावस्थामें तीनों योगोंका निरूद्धपणा चितवना, चौदवां गुणस्थानमें सूक्षमक्रियासे निवृतन होनेका चिंतधन करना.
शुक्लध्यानके च्यार लक्षण देवादिके उपसर्गसे चलायमान न होवे, सूक्षमभाव श्रवण कर ग्लानी न लावे, शरीरसे आत्मा अलग और आत्मासे शरीर अलग चिंतवे. शरीरको अनित्य समझ पुद्गल जो पर वस्तु जान उनका त्याग करे ।
शुक्लध्यानका च्यार अवलम्बन. क्षमा करे, निर्लोभता रखे. निष्कपटी हो, मदरहित हो.
शुक्लध्यानके चार अनुपेक्षा. यह मेरा जीव अनंतवार संसारमें परिभ्रमन कीया है. इन आरापार संसार में यह पौद. गलीक वस्तु सर्व अनित्य है, शुभ पुद्गल अशुभपणे और अशुभपुदगल शुभपणे प्रणमते है इसी वास्ते पुदगलोंसे प्रेम नही रखना एसा विचार करे। संसारमें परिभ्रमन करनेका मूल कारण शुभाशुभ कर्म है कर्मोका मूल कारण च्यार हेतु है उनोंका त्याग कर स्वसत्तामें रमणता करना एसा विचार करे उसे शुक्ल ध्यान कहते है इति ध्यान ।
(१२) विउस्सगतप-त्याग करना जिस्का दो भेद है (१) द्रव्य त्याग ( २ ) भावत्याग-जिस्मे द्रव्यत्यागके च्यार भेद है शरीरका त्याग करना. उपाधिका त्याग करना गच्छादि संघका 'त्याग करना. ( याने एकान्तमे ध्यान करे ) भातपाणीका त्याग करना. ओर भावत्यागके तीन भेद है कमाय-क्रोधादिका त्याग