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(१३०) शीघबोध भाग २ जो.
आयुष्य कर्मबन्ध होनेका कारण-नरकायुष्य बन्धनेका च्यार कारण है महा आरंभ, महा परिग्रह पांचेन्द्रियका घातो. मांस भक्षण करना इन च्यार कारणोंसे नरकायुष्य बन्धता है। माया करे गुढ माया करे. कुडा तोल माप करे. असत्य लेख लिखना इन च्यार कारणोंसे जीव तीर्यचका आयुष्य बन्धता है। प्रकृतिका भद्रीक हो विनयवान हो. दयाका परिणाम है दुसरेको संपत्ती देख इर्षा न करे इन च्यार कारणों से मनुष्यका आयुष्य बन्धता है । सराग संयम संयमासंयम, अकाम निर्जरा, बालतप इन च्यार कारणों से देवतावोंका आयुष्य बन्धता है।
नाम कर्मबन्ध के कारण-भावका सरल; भाषाका सरल. कायाका सरल, और अविषमबाद योग इन च्यार कारणोंसे शुभ नाम कर्मका बन्ध होता है तथा भावका असरल वांका. भाषाका असरल, कायाका असरल, विषमबाद योग इन च्यारों कारणोसे अशुभ नाम कर्मबन्ध होता है इति
गौत्र कर्मबन्ध के कारण जातिका मद करे. कुलका मद करे. बलका मद करे रूपका मद करे तपका मद करे लाभका मद करे. सूत्रका मद करे ऐश्वर्यका मद करे इन आठ मदके त्याग करनेसे उच्च गौत्र कर्मका बन्ध होते है इनोसे विप्रीत आठ मद करनेसे निच गोत्र कर्मका बन्ध होते है।
अन्तराय कर्मबन्धके पांच कारण है दान करते हुवेकों अंत. राय करना कीसी के लाभ होते हो उनों में अंतराय करना. भोग में अन्तराय करना. उपभोग में अंतराय करना. वीर्य याने कोइ पुरुषार्थ करता हो उनोंके अन्दर अंतराय करना. इन पांचो कारणोंसे अंतराय कर्मबन्ध होते है।
(९) मोक्षतत्व-जीव रूपी सुवर्ण कर्म रूपी मैल ज्ञान दर्शन चारित्र रूपी अग्निसे सोधके निर्मल करे उसे मोक्ष तत्त्व कहते है जीव के आत्म प्रदेशोंपर कर्मदल अनादि काल से लगे हुवे है