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नवतत्त्व.
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कलेवर जीस मकानमें पडा हो वहांतक सूत्र न पढे। यह वीस अस्वाध्याय ठाणांयांगसूत्रके दशवे ठाणामे कही है। प्रभात, श्याम मध्यान्ह आदि रात्री एवं च्यार अकाल अकेक मुहुर्त तक सूत्र न पढे ।२१। २२ । २३ ।२४। आषाढ शुद १५ श्रावण वद १ भाद्रवा शुद १५ आश्वन वद १ आश्वन शुद १५ कार्तिक वद १ कार्तिक शुद १५ मागशर वद १ चैत शुद १५ वैशाख वद १ एवं दश दिन सूत्र न पढ वह १२ अस्वाध्याय निशिथसूत्रके उन्नीसवे उदे. शामें कही है और दो अस्वाध्याय ठाणायांगसूत्र में कही है एवं सर्व मिल ३४ अस्वाध्याय अवश्य टालनी चाहिये।
सवैया-तारोतुटे, रातीदिश, अकालमें गाजविज, कडक आकाश तथा भूमि कम्प भारी है. बालचन्द्र यक्षचेन्ह आकाश अग्निकाय काली धोली धूमर ओर रजघात न्यारी है. हाड मांस लोहीराद ठरडे मसान जले, चन्द्र सूर्य ग्रहन और राजमृत्यु टालीये, पांचेन्द्रिका कलेवर राजयुद्ध सर्व मील वीस बोल टाल कर ज्ञानी आज्ञा पाली है. आसाढ, भाद्रवो, आसोज, काती, चैती पुनम जाण; इनहीज पांचो मासकी पडिवा पांच व्याख्यान पडिवा पांच ब्याख्यान श्याम शुभे नही भणीये | आदी रात दे फार सर्व मीली चोतीस थुणिये. चोतीस अस्वाध्याय टालके सूत्र भणसे सोय, लालचन्द इणपर कहे जहां विघ्न न व्यापे कोय ॥१॥ इति स्वाध्याय ।
(११) ध्यान-ध्यानके च्यार भेद है. (१) आर्तध्यान, रौद्रध्यान, धर्मध्यान, शुक्लध्यान जिस्मे आर्तध्यान के च्यार पाया है अच्छी मनोज्ञ वस्तुकि अभिलाषा करे. खराब अमनोज्ञ वस्तु का वियोग चिंतवे, रोगादि अनिष्ट पदार्थोका वियोंग चिंतवे, परभवमें सुखोंका निदान करे। अब आर्तध्यानके च्यार लक्षण.