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(८८) शीघ्रबोध भाग २ जो.
(२) दुसरा साधारण धनास्पतिकाय है उनोंके अनेक भेद है मूला कान्दा लसण आदो अडषी रतालु पीडालु आलु सकरकन्द गाजर सुवर्णकन्द बज्रकन्द कृष्णकन्द मासफली मुगफली हल्दी कर्चुक नागरमोथ उगते अळूरे पांच वर्णकि निलण फूलण कचे कोमल फल पुष्प विगडे हुवे वासी अन्नमें पेदा हुइ दुर्गन्धमें अनन्तकाय है औरभी जमीनके अन्दर उत्पन्न होनेवाले वनास्पति सब अनंतकायमें मानी जाती है दृष्टान्त जेसा लोहाका गोला अग्निमें पचानेसे उन लोहाके सब प्रदेशमें अनि प्रदीप्त हो जाती है इसी माफीक साधारण घनास्पतिके सब अंगमें अनंते जीव होते है वह अनंते जीव साथहीमें पेदा होते है साथही में आहार ग्रहन करते है साथही में मरते है अ. र्थात् उन अनंते जीवोंका एक ही शरीर होते है उने साधारण वनास्पतिकाय या बादर निगोदभी कहते है।
वनास्पतिकायके च्यार भांगे बतलाये जाते है ।
(१) प्रत्येक वनास्पतिकायके निश्रायमें प्रत्येक बनास्पति उत्पन्न होती है जेसे वृक्षके साखावों ।
(२) प्रत्येक घनास्पतिकि निश्रायमे साधारण वनाएतिकाय उत्पन्न होती है कचे फल पुष्पोंके अन्दर कोमलतामें अनंते जीव पेदा होना।
(३) साधारण वनास्पतिकि निश्राय प्रत्येक घनास्पति उत्पन्न होना जेसे मूलोंके पत्ते, कान्दोंके पत्ते इत्यादि उन पतोंमें प्रत्येक वनस्पति रहती है
(४) साधारणकि निश्राय साधारण वनस्पति उत्पन्न होती है जेसे कान्दा मूळा ।