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संवरतत्त्व.
संभावना - केशी गौतमस्वामिने करी थी. निर्जराभावना -अर्जुन मुनि महाराजने करी थी. लोकसार भावना - शिवराज ऋषिने करी थी. बोधोबीज भावना - आदीश्वर के ९८ पुत्रोंने करी थी. धर्मभावना-धर्मरूची अनगारने करी थी.
यह बारह भावना भावनेसे संवर होते है ।
सामायिक चारित्र, छदोपस्थापनिय चारित्र, परिहारविशुद्ध चारित्र, सुक्ष्म संपराय चरित्र यथाख्यात्त चारित्र यह पांच चारित्र संबर होते है एवं ८-२२-१०-१२-२ सर्व मीलके ५७ प्रकारके संघर है इति संवरतत्व ।
(७) निर्जरातत्व - जीवरूपी कपडो कर्मरूपी मैल लगा हुवा है जिस्कों ज्ञानरूपी पाणी तपश्चर्यारूपी साबुसे धो के उज्वल बनावे उसे निर्जरातत्व कहते है वह निर्जरा दो प्रकारकी एक देशसं आत्मप्रदेशोकों निर्मल बनावे; दुसरी सर्व से आत्मप्रदेशों को निर्मल बनावे, जिसमें देश निर्जरा दो प्रकार (१) सकाम निजरा (२) अकाम निर्जरा जेसे सम्यक् ज्ञान दर्शन विना अनेक प्रकारके कष्ट क्रिया करनेसे कर्मनिर्जरा होती है वह सब अकाम निर्जरा है और सम्यक् ज्ञान दर्शन संयुक्त कष्ट क्रिया करना वह.. सकाम निर्जरा है सकामनिर्ज्जर। और अकामनिर्ज्जरामे इतना ही भेद है जो अकामनिर्जरासे कर्म दूर होते है वह कीसी भवो कारण पाके वह कर्म और भी चीप जाते है और सम्यक् सकामनिर्जरा हुइ हो वह फीर कीसी भवमें वह कर्म जीवके नही लगते है यह हो सम्यक् ज्ञानकी बलीहारी है इसवास्ते पहिले सम्यक ज्ञान दर्शन प्राप्त कर फोर यह निर्जरा करना चाहिये ।