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नवतत्त्व.
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भाव औणोदरीके अनेक भेद है. क्रोध नहीं करे, मान नहीं करे, माया नहीं करे, लोभ नहीं करे, रागद्वेष नहीं करे, द्वेष न करे क्लेश नहीं करे, हास्य भयादि नहीं करे अर्थात् जो कर्मबन्ध के कारण है उनोंकों क्रमशः कम करना उसे औणोदरी कहते है।
(३) भिक्षाचारी-मुनि भिक्षा करनेकों जाते है उन समय अनेक प्रकारके अभिग्रह करते है यह उत्सर्ग मार्ग है जीतना नीतना ज्ञान सहित कायाको कष्ट देना उतनी उतनी कर्मनिर्जरा अधिक होती है उनी अभिग्रहोंके यहांपर तीस बोल बतलाये जाते है। यथा
(१) द्रव्याभिग्रह-अमुक द्रव्य मोले तो लेना. . ( २ ) क्षेत्राभिग्रह -अमुक क्षेत्रमें मीले तो लेना. (३) कालाभिग्रह-अमुक टाइममें मीले तो लेना. (४) भावाभिग्रह-पुरुष या स्त्री इस रूपमें दे तो लेना. (५) उक्खीताभिग्रह-वरतन से निकालके देवे तो लेना. (६) निक्खीताभिग्रह-धरतनमें डालताहुवा देवेतो लेना. (७) उक्खीतनिक्खीत-व० निकालते डालते दे तो लेना. (८) निक्खीतउक्खीत-व० डालते निकालते दे तो लेना. (९) वट्ठीजाभिग्रह-भेंटते हुवे आहार दे तो लेना. (१०) साहारीजाभिग्रह-एक वरतन से दुसरे घरतन में
डालते हुवे देवे तो लेना. (११) उवनित अभिग्रह-दातार गुण कीर्तन करके आ
हार देवे तो लेना.